स्कंद पुराण : एक जीवंत यात्रा और व्यक्तिगत अनुभव
जब मैंने पहली बार स्कंद पुराण के नाम से परिचित हुआ तो सोचा कि यह बस एक लंबा चौड़ा धार्मिक ग्रंथ होगा जैसे स्कूल में पढ़ा था ! पर जैसे ही मैंने इसे खोला और पहली पंक्ति पढ़ी लगा कहीं मैं देवलोक के किसी पवित्र द्वार पर खड़ा हूँ ! तब मुझे समझ नहीं आया कि यह ग्रंथ मेरे जीवन को एक नई दिशा दे देगा !
” मुझे याद है मेरी पहली काशी यात्रा पर घाटों पर बैठे बैठे किसी साधु ने गंगा की लहरों के बीच से उठा का उठाया श्लोक सुनाया ‘ काशी के कण कण में शिव वसते हैं ! ‘ उस वक्त मेरे हाथ पैर कांप गए थे !”
ऐसा अनुभव किसी ने कागज पर नहीं लिखा होगा ! वह तो घटनाओं की रूह में उतरता है और यही तो स्कंद पुराण की ताकत है यह सिर्फ देवताओं का इतिहास नहीं, हमारी अपनी कल्पना, हमारी ही सांसों का दस्तावेज़ है !
क्या आप कभी सोचते हैं कि कोई ग्रंथ खुद ब खुद बनता है या उसे समय गढ़ता है ? स्कंद पुराण का इतिहास ठीक वैसा ही है ! विद्वानों का कहना है कि इसकी जड़ें छठी सातवीं शताब्दी तक जाती हैं लेकिन यह ग्रंथ कभी पूरा नहीं हुआ हर दौर ने इसमें जुड़कर नया रंग भर दिया !
नेपाल में मिली गुप्त लिपि की पांडुलिपि में सातवीं शताब्दी के श्लोक हैं ! पर फिर भी दक्षिण भारत के मंदिरों में कस्तूरी की खुशबू तो तब से पहले की है क्या पता वहाँ के भटियारों के गीतों ने भी पुराण में जगह बना ली हो ! यह ग्रंथ उन कालचक्रों का साथी है, जो कभी रुकता नहीं !
स्कंद पुराण किसी एक लेखक का कलम नहीं बल्कि अनेक आकाशवाणियों का संग्रह है !
स्कंद पुराण को सामान्यतः छह ( 6 ) मुख्य खंडों में बांटा गया है पर यह राह कभी कभी सात, आठ या और भी हिस्सों में बंट जाती दिखती है ! इसे पढ़ते पढ़ते ऐसा लगता है जैसे आप किसी पुराने शहर में भटक रहे हों एक मुहाने पर मंदिर दिखे, दूसरे पर कुआँ, उसके बाद तीर्थ घाट !
” क्या आपने कभी सोचा है कि तीर्थ यात्रा सिर्फ घूमना नहीं बल्कि आत्मा का सफर भी है ?”
स्कंद पुराण हमें यह सवाल बार बार पूछता है !
जगतगुरु स्कंद की कथा
यहां देवता और दानव का संघर्ष नहीं बल्कि मानव के भीतर के असुर से लड़ने की प्रेरणा है !
सत्यनारायण व्रत
कहानी तो साधारण लगती है पर इसमें गहरी मानवीय संवेदना छिपी है !
” यह व्रत सिर्फ पूजा पाठ नहीं बल्कि परिवार को जोड़ने वाला सूत्र है !”
तीर्थ महात्म्य
तीर्थ सिर्फ नदी पर्वत नहीं उनके पीछे की पुरानी कहानियाँ हैं
इन कहानियों में इंसानी अनुभव रचा बसा है !
स्कंद पुराण का दर्शन सरल भी है गूढ़ भी
” यह पढ़कर सचमुच रोंगटे खड़े हो जाते हैं !”
और जब दर्शन से गिरे पंक्तियाँ रोजमर्रा के जीवन से जुड़ती हैं तो अनुभव अमृत हो जाता है !
स्कंद पुराण ने हमारे त्यौहारों को रंग दिया
इसकी कहानियाँ लोकगीतों, नाटकों, चित्रकथाओं, और भजन कीर्तन में अमर हैं ! बुद्धनाथ की पेंटिंग से लेकर तमिलनाडु के कोविलों तक हर जगह इसकी छाप मिलती है !
” एक बार मैं तमिलनाडु के मंदिर में गया था, वहाँ का पुरोहित मुझे शंखनाद के बीच एक श्लोक सुनाकर बोला ‘ यह श्लोक बंगाल से आया, पर यहां की मिट्टी में रचा बसा !'”
स्कंद पुराण सिर्फ देवी देवताओं का ग्रंथ नहीं हर मानव के भीतर बैठा देवत्व खोजने का माध्यम है ! इसमें मिले अनुभव, कथा, दर्शन, तीर्थ सब मिलकर जीवन की सही दिशा दिखाते हैं !
आज जब कोई परिवार व्रत करता है, तीर्थ जाता है, कथा सुनता है तो वह सिर्फ परंपरा नहीं निभा रहा, अपनी ही आत्मा की पुकार सुन रहा है ! और यही तो स्कंद पुराण की सबसे बड़ी खूबी है यह ग्रंथ हमें हमारी ही ज़िंदगी से मिलवाता है हमें हमारी ही आत्मा की तलाश में साथ देता है !
” तो जब अगली बार आप घड़ी नहीं घंटी की ध्वनि सुनेंगे तो याद रखना वह सिर्फ घंटी नहीं, आपके भीतर की धड़कन का आह्वान है !”
यही है स्कंद पुराण का जादू वह हर मानव के अनुभव से जुड़कर खुद मानवीय हो जाता है !