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ब्रह्म पुराण: एक यात्रा भारतीय संस्कृति और विश्वास के संग
जब आप किसी प्राचीन मंदिर के प्रांगण में चुपचाप बैठे हों और अचानक कोई वृद्ध आपको ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सूर्य की अद्भुत गाथाएँ सुनाने लगे तो सोचिए आपके मन पर क्या असर होगा ! यही असर देता है ब्रह्म पुराण, सबसे पुराने और रहस्यमयी भारतीय महाग्रंथों में से एक ! कभी कभी मैं सोचता हूँ अगर किसी ने सच में पूरा ब्रह्म पुराण पढ़ लिया हो तो उसके भीतर भारत की आत्मा बस जाती होगी !
पारंपरिक शुरुआत – नाम, रचयिता, और कहानियाँ
पहली बार ब्रह्म पुराण को मैंने तब जाना जब दादी ने मेरी गोद में बैठाकर सृष्टि की कहानी सुनाई थी : शुरू में कुछ नहीं था बस जल ही जल था ! जल पर शेषनाग की शैय्या में विश्राम करते भगवान विष्णु थे, उनकी नाभि से कमल खिला, उस कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ ! ब्रह्माजी ने आंखें खोली चार दिशाओं में देखा और सोच में पड़ गए अब आगे क्या ? ऐसी कहानियाँ जब पढ़ता हूँ या सुनता हूँ तो लगता है हर पुराण की शुरुआत किसी मासूम सवाल या जिज्ञासा से होती है !
किताबों में लिखा है की ब्राह्मणों के प्रधान ग्रंथ ब्रह्म पुराण को महर्षि वेदव्यास ने संकलित किया ! लेकिन हर कोई मानता नहीं ; शोधकर्ता तो कहते हैं जैसे जैसे समय बदला दशम शताब्दी से लेकर सोलहवीं तक इस पुराण में भी बहुत कुछ बदल दिया गया ! रचनाकार कई हैं भाषाएँ बदलती रही जगहें बदलती रहीं ! लेकिन मूल में वही कहानियाँ हैं जिनसे हमारा धर्म, हमारा समाज और हमारी सोच गढ़ी गई !
अगर किसी से पूछें कि ब्रह्म पुराण में कितने अध्याय हैं, जवाब मिलेगा ” दो: पूर्व और उत्तरभाग ” ! असल में कुल दोसो पैंतालीस ( 245 ) अध्याय हैं पर हर जगह श्लोकों की संख्या अलग मिलेगी कभी 10,000 कभी 7000 कभी तो 8,000 भी ! कुछ पांडुलिपियाँ खो गईं और कुछ संशोधित हो गईं ! संवाद का मुख्य स्वरूप है ब्रह्मा जी, दक्ष प्रजापति और नारद मुनि ! यही तीन नाम हर जगह सुनाई देते हैं ; कभी कभी लगता है जैसे तीन दोस्तों की लंबी बातचीत हो रही हो, जिसमें सृष्टि का रहस्य खोज रहे हैं !
सृष्टि-विज्ञान, युगों की कथा और जीवन का सिलसिला
अब एक मज़ेदार बात सोचिए : ब्रह्म पुराण पढ़ते पढ़ते अचानक पता चलता है की सबसे पहले जल था फिर भगवान विष्णु फिर कमल और फिर ब्रह्मा ! क्या ऐसा सच में था ? किस्सा यही दिखाता है कि सृजन की शुरुआत हमेशा खालीपन से होती है ! आगे की बात और खूबसूरत है ब्रह्मा के एक दिन में कई हजार साल के युग खतम हो जाते हैं फिर प्रलय आता है, सब वापस शून्य में ! कितनी अजीब सी कल्पना है !
आप सोचिए, सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ये चार युग कितनी बार बदलते हैं ! ब्रह्मा का एक “कल्प” और “मन्वंतर” सुनने में जितना भारी लगता है असल में उतना ही रोमांचक है ! मौसमों के बदलने की तरह ब्रह्मा के दिन में पूरी सृष्टि बदल जाती है… हो सकता है यही कारण है कि भारत में हमेशा सब कुछ बदलता है, पर धागा एक ही रहता है !
तीर्थ-यात्राएँ, भूगोल और पावन स्थल
जब पहली बार गोदावरी नदी के तट पर गया था तो वहाँ के शांत जल और मंदिरों के घंटे की गूंज में सच में एक अलग शांति मिली ! सुनी हुई कहानी याद आई कि ब्रह्म पुराण में तीर्थों का यही महत्व बताया गया है ! कोई भी नदी, पर्वत या स्थल सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, हर स्थल पाप से मुक्ति का रास्ता है ! इस पुराण में जम्बूद्वीप और उसके नौ ( 9 ) उप द्वीपों का ऐसा रोमांचक विवरण मिलता है कि गाँव का बच्चा भी रामायण या महाभारत से पहले ब्रह्म पुराण पढ़ता तो भारतीय भूगोल की पूरी समझ आ जाए !
गोदावरी के घाट, ओडिशा का जगन्नाथपुरी, कोणार्क का सूर्य मंदिर ब्रह्म पुराण इन सभी को एक खास दृष्टिकोण से देखता है ! तीर्थ में स्नान, तर्पण, पूजा, निवास इन सबका बारीकी से तरीका बताता है ! कभी कभी सोचता हूँ की हर तिथि पर भारत के कोने कोने से लाखों लोग तीर्थों की ओर क्यों जाते हैं ? जवाब ब्रह्म पुराण के पन्नों में मिलता है !
पौराणिक किरदार, संवाद और गहरी सोच
कितनी मजेदार बात है ब्रह्म पुराण का नाम तो ब्रह्मा है पर इसमें विष्णु, शिव, सूर्य, पार्वती इनकी कहानियाँ हर दूसरे अध्याय में मिल जाती हैं ! सप्तऋषि, राजा पृथु, सूर्यवंश, चंद्रवंश जैसी कथाएँ बहुत अनूठी हैं ! धरती के सबसे पुराने राजा हो, या देवताओं की आत्मा, ब्रह्म पुराण में उनका आत्म आलोक मिलता है !
कुछ लोगो के अनुभव के अनुसर गुजरात यात्रा के दौरान सूर्य मंदिर की गाथा सुनकर मन में यही सोच आई कि शायद ब्रह्म पुराण की महिमा हर मंदिर, हर तीर्थ और हर पूजा अर्चना में छुपी रहती है !
धर्म, समाज और विचार – सवालों के जवाब
अगर आप सोचें कि ब्रह्म पुराण सिर्फ आस्था और पूजा का ग्रंथ है तो शायद आप पूरा नहीं समझ पाएँ ! इसमें धर्म, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष, पुण्य पाप, भक्ति हर बड़ी चीज़ को अपने खास अंदाज़ में समझाया गया है ! कई बार सवाल उठता है कि क्या धर्म सिर्फ पूजा है ? ब्रह्म पुराण कहता है : नहीं ! धर्म सेवा है, सत्य है, अच्छा आचरण है, सबका भला है, और साथ ही ध्यान, ज्ञान, भक्ति का रास्ता भी है !
चरित्रों की विविधता सप्तऋषि, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, मिश्रित जातियाँ सबका धर्म, कर्तव्य, अधिकार बरसों पहले ही लिख दिए गए थे ! कभी कभी तो लगता है आज भी वही बातें लागू हो रही हैं ; परिवार, समाज, शिक्षा, सेवा सब कुछ इसी पुराण से चलते हैं !
एहसास, कल्पना और अनुकरण
जैसे जैसे ब्रह्म पुराण की यात्रा बढ़ती है, कल्पनाएँ भी बढ़ती जाती हैं ! सोचिए अगर आप किसी पुराने मंदिर में गंगा के किनारे या एक शांत तट पर बैठकर इस ग्रंथ को पढ़ें तो आपके मन में हजारों सवाल उठते हैं : हम कौन हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? क्या थोड़ी सी पूजा या स्नान से पाप दूर हो जाता है ? ब्रह्म पुराण सीधा जवाब नहीं देता सोचने पर मजबूर कर देता है !
कई बार लगता है जैसे जीवन के हर सवाल का छोटा छोटा जवाब इसी में छुपा है ! आप चाहें तो खुद पढ़कर देखिए कोई भी परिच्छेद खोलिए वहाँ आपको आने वाले समय की दिशा मिलेगी !
सोने जैसा प्रभाव – धर्म और संस्कृति पर छाप
ब्रह्म पुराण केवल तीर्थ, देवता और कर्म की बात नहीं करता बल्कि भारतीय समाज के कला, स्थापत्य, व्रत, त्योहार, भजन कीर्तन जैसे हर पहलू को रंग देता है ! मंदिरों की वास्तुशैली, प्रतिमाओं का चेहरा, सूर्य पूजा का उल्लास सब किसी न किसी तरह इसी पुराण पर टिके हैं !
किसी दिन पूजा करने बैठा तो मन में आया ब्रह्मा की चार मुख वाली प्रतिमा क्यों, सूर्य की पूजा क्यों, गंगा का जल इतना पवित्र क्यों ? जवाब ढूँढने की कोशिश की और पाया, ये सब ब्रह्म पुराण के गहन सोच और परंपरा का असर है !
ऐसा नहीं है कि ब्रह्म पुराण पर कभी सवाल नहीं उठे या आलोचना न हुई ! दरअसल पुराण के कुछ अध्यायों में नए दर्शनों, मतवादों पर गहराई से चर्चा भी मिलती है ! समाज, धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति इन सबका बार बार पुनर्विचार हुआ ! आज भी ब्रह्म पुराण पढ़कर बहुत सी बातें बदलती हैं, कई सवालों के जवाब मिलते हैं, कई नए सवाल खड़े होते हैं !
आप भी अगर चाहें तो अपने जीवन के बड़े और छोटे सवाल लेकर ब्रह्म पुराण देखिए… हो सकता है जवाब आपको वहाँ नहीं अपने मन में ही मिल जाए !
चलते फिरते विचार – आज के दौर में ब्रह्म पुराण
आज का डिजिटल युग है गूगल पर ब्रह्म पुराण खोजिए हिंदी अंग्रेजी अनुवाद मिल जाएगा, गीता प्रेस से खरीदिए, ऑनलाइन लेख पढ़िए ! शोधकर्ता और लेखक नए नए सवाल पूछ रहे हैं सामाजिक न्याय, महिला शिक्षा, पर्यावरण चेतना, धर्मनिरपेक्षता ! खुद को बदलने, समझने और आगे बढ़ने का रास्ता ब्रह्म पुराण में ढूँढने लगे हैं !
अगर कभी मंदिर जाएँ, किसी तीर्थ पर स्नान करें, या पवित्र स्थलों की यात्रा करें तो मन में एक बार सोचिए क्या सच में पवित्रता सिर्फ परंपरा से आती है ? ब्रह्म पुराण कहता है कि असली पवित्रता मन और कर्म से आती है !
अक्सर लोग कहते हैं ब्रह्म पुराण सिर्फ ग्रंथ है ! लेकिन धीरे धीरे समझ आता है कि यह कोई किताब नहीं वल्कि एक जीती जागती धरोहर है ! घर के मंदिर में दीपक जलाते हुए, पिता के आँखों में धर्म के सवाल, माँ की पूजा में भक्ति की झलक ये सब ब्रह्म पुराण के कारण हैं !
अगर आप सच में इस ग्रंथ को एक नई नजर से पढ़ें तो पाएँगे कि ब्रह्म पुराण धर्म, समाज, संस्कृति, कला, विचार, सवाल सबका जवाब देता है ! यह बुद्धि ज्ञान की किताब है पर प्रेम और भावना का भी समंदर है !
तो अगली बार जब आप किसी मंदिर जाएँ तो ब्रह्म पुराण सुनें या पढ़ें और अपने भीतर झाँकिए, कौन जाने भारत की आत्मा की धड़कन आपको सुनाई दे जाए !ब्रह्म पुराण: एक यात्रा भारतीय संस्कृति और विश्वास के संग
जब आप किसी प्राचीन मंदिर के प्रांगण में चुपचाप बैठे हों और अचानक कोई वृद्ध आपको ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सूर्य की अद्भुत गाथाएँ सुनाने लगे तो सोचिए आपके मन पर क्या असर होगा ! यही असर देता है ब्रह्म पुराण, सबसे पुराने और रहस्यमयी भारतीय महाग्रंथों में से एक ! कभी कभी मैं सोचता हूँ अगर किसी ने सच में पूरा ब्रह्म पुराण पढ़ लिया हो तो उसके भीतर भारत की आत्मा बस जाती होगी !
पारंपरिक शुरुआत – नाम, रचयिता, और कहानियाँ
पहली बार ब्रह्म पुराण को मैंने तब जाना जब दादी ने मेरी गोद में बैठाकर सृष्टि की कहानी सुनाई थी : शुरू में कुछ नहीं था बस जल ही जल था ! जल पर शेषनाग की शैय्या में विश्राम करते भगवान विष्णु थे, उनकी नाभि से कमल खिला, उस कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ ! ब्रह्माजी ने आंखें खोली चार दिशाओं में देखा और सोच में पड़ गए अब आगे क्या ? ऐसी कहानियाँ जब पढ़ता हूँ या सुनता हूँ तो लगता है हर पुराण की शुरुआत किसी मासूम सवाल या जिज्ञासा से होती है !
किताबों में लिखा है की ब्राह्मणों के प्रधान ग्रंथ ब्रह्म पुराण को महर्षि वेदव्यास ने संकलित किया ! लेकिन हर कोई मानता नहीं ; शोधकर्ता तो कहते हैं जैसे जैसे समय बदला दशम शताब्दी से लेकर सोलहवीं तक इस पुराण में भी बहुत कुछ बदल दिया गया ! रचनाकार कई हैं भाषाएँ बदलती रही जगहें बदलती रहीं ! लेकिन मूल में वही कहानियाँ हैं जिनसे हमारा धर्म, हमारा समाज और हमारी सोच गढ़ी गई !
अगर किसी से पूछें कि ब्रह्म पुराण में कितने अध्याय हैं, जवाब मिलेगा ” दो: पूर्व और उत्तरभाग ” ! असल में कुल दोसो पैंतालीस ( 245 ) अध्याय हैं पर हर जगह श्लोकों की संख्या अलग मिलेगी कभी 10,000 कभी 7000 कभी तो 8,000 भी ! कुछ पांडुलिपियाँ खो गईं और कुछ संशोधित हो गईं ! संवाद का मुख्य स्वरूप है ब्रह्मा जी, दक्ष प्रजापति और नारद मुनि ! यही तीन नाम हर जगह सुनाई देते हैं ; कभी कभी लगता है जैसे तीन दोस्तों की लंबी बातचीत हो रही हो, जिसमें सृष्टि का रहस्य खोज रहे हैं !
सृष्टि-विज्ञान, युगों की कथा और जीवन का सिलसिला
अब एक मज़ेदार बात सोचिए : ब्रह्म पुराण पढ़ते पढ़ते अचानक पता चलता है की सबसे पहले जल था फिर भगवान विष्णु फिर कमल और फिर ब्रह्मा ! क्या ऐसा सच में था ? किस्सा यही दिखाता है कि सृजन की शुरुआत हमेशा खालीपन से होती है ! आगे की बात और खूबसूरत है ब्रह्मा के एक दिन में कई हजार साल के युग खतम हो जाते हैं फिर प्रलय आता है, सब वापस शून्य में ! कितनी अजीब सी कल्पना है !
आप सोचिए, सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ये चार युग कितनी बार बदलते हैं ! ब्रह्मा का एक “कल्प” और “मन्वंतर” सुनने में जितना भारी लगता है असल में उतना ही रोमांचक है ! मौसमों के बदलने की तरह ब्रह्मा के दिन में पूरी सृष्टि बदल जाती है… हो सकता है यही कारण है कि भारत में हमेशा सब कुछ बदलता है, पर धागा एक ही रहता है !
तीर्थ-यात्राएँ, भूगोल और पावन स्थल
जब पहली बार गोदावरी नदी के तट पर गया था तो वहाँ के शांत जल और मंदिरों के घंटे की गूंज में सच में एक अलग शांति मिली ! सुनी हुई कहानी याद आई कि ब्रह्म पुराण में तीर्थों का यही महत्व बताया गया है ! कोई भी नदी, पर्वत या स्थल सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, हर स्थल पाप से मुक्ति का रास्ता है ! इस पुराण में जम्बूद्वीप और उसके नौ ( 9 ) उप द्वीपों का ऐसा रोमांचक विवरण मिलता है कि गाँव का बच्चा भी रामायण या महाभारत से पहले ब्रह्म पुराण पढ़ता तो भारतीय भूगोल की पूरी समझ आ जाए !
गोदावरी के घाट, ओडिशा का जगन्नाथपुरी, कोणार्क का सूर्य मंदिर ब्रह्म पुराण इन सभी को एक खास दृष्टिकोण से देखता है ! तीर्थ में स्नान, तर्पण, पूजा, निवास इन सबका बारीकी से तरीका बताता है ! कभी कभी सोचता हूँ की हर तिथि पर भारत के कोने कोने से लाखों लोग तीर्थों की ओर क्यों जाते हैं ? जवाब ब्रह्म पुराण के पन्नों में मिलता है !
पौराणिक किरदार, संवाद और गहरी सोच
कितनी मजेदार बात है ब्रह्म पुराण का नाम तो ब्रह्मा है पर इसमें विष्णु, शिव, सूर्य, पार्वती इनकी कहानियाँ हर दूसरे अध्याय में मिल जाती हैं ! सप्तऋषि, राजा पृथु, सूर्यवंश, चंद्रवंश जैसी कथाएँ बहुत अनूठी हैं ! धरती के सबसे पुराने राजा हो, या देवताओं की आत्मा, ब्रह्म पुराण में उनका आत्म आलोक मिलता है !
कुछ लोगो के अनुभव के अनुसर गुजरात यात्रा के दौरान सूर्य मंदिर की गाथा सुनकर मन में यही सोच आई कि शायद ब्रह्म पुराण की महिमा हर मंदिर, हर तीर्थ और हर पूजा अर्चना में छुपी रहती है !
धर्म, समाज और विचार – सवालों के जवाब
अगर आप सोचें कि ब्रह्म पुराण सिर्फ आस्था और पूजा का ग्रंथ है तो शायद आप पूरा नहीं समझ पाएँ ! इसमें धर्म, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष, पुण्य पाप, भक्ति हर बड़ी चीज़ को अपने खास अंदाज़ में समझाया गया है ! कई बार सवाल उठता है कि क्या धर्म सिर्फ पूजा है ? ब्रह्म पुराण कहता है : नहीं ! धर्म सेवा है, सत्य है, अच्छा आचरण है, सबका भला है, और साथ ही ध्यान, ज्ञान, भक्ति का रास्ता भी है !
चरित्रों की विविधता सप्तऋषि, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, मिश्रित जातियाँ सबका धर्म, कर्तव्य, अधिकार बरसों पहले ही लिख दिए गए थे ! कभी कभी तो लगता है आज भी वही बातें लागू हो रही हैं ; परिवार, समाज, शिक्षा, सेवा सब कुछ इसी पुराण से चलते हैं !
एहसास, कल्पना और अनुकरण
जैसे जैसे ब्रह्म पुराण की यात्रा बढ़ती है, कल्पनाएँ भी बढ़ती जाती हैं ! सोचिए अगर आप किसी पुराने मंदिर में गंगा के किनारे या एक शांत तट पर बैठकर इस ग्रंथ को पढ़ें तो आपके मन में हजारों सवाल उठते हैं : हम कौन हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? क्या थोड़ी सी पूजा या स्नान से पाप दूर हो जाता है ? ब्रह्म पुराण सीधा जवाब नहीं देता सोचने पर मजबूर कर देता है !
कई बार लगता है जैसे जीवन के हर सवाल का छोटा छोटा जवाब इसी में छुपा है ! आप चाहें तो खुद पढ़कर देखिए कोई भी परिच्छेद खोलिए वहाँ आपको आने वाले समय की दिशा मिलेगी !
सोने जैसा प्रभाव – धर्म और संस्कृति पर छाप
ब्रह्म पुराण केवल तीर्थ, देवता और कर्म की बात नहीं करता बल्कि भारतीय समाज के कला, स्थापत्य, व्रत, त्योहार, भजन कीर्तन जैसे हर पहलू को रंग देता है ! मंदिरों की वास्तुशैली, प्रतिमाओं का चेहरा, सूर्य पूजा का उल्लास सब किसी न किसी तरह इसी पुराण पर टिके हैं !
किसी दिन पूजा करने बैठा तो मन में आया ब्रह्मा की चार मुख वाली प्रतिमा क्यों, सूर्य की पूजा क्यों, गंगा का जल इतना पवित्र क्यों ? जवाब ढूँढने की कोशिश की और पाया, ये सब ब्रह्म पुराण के गहन सोच और परंपरा का असर है !
ऐसा नहीं है कि ब्रह्म पुराण पर कभी सवाल नहीं उठे या आलोचना न हुई ! दरअसल पुराण के कुछ अध्यायों में नए दर्शनों, मतवादों पर गहराई से चर्चा भी मिलती है ! समाज, धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति इन सबका बार बार पुनर्विचार हुआ ! आज भी ब्रह्म पुराण पढ़कर बहुत सी बातें बदलती हैं, कई सवालों के जवाब मिलते हैं, कई नए सवाल खड़े होते हैं !
आप भी अगर चाहें तो अपने जीवन के बड़े और छोटे सवाल लेकर ब्रह्म पुराण देखिए… हो सकता है जवाब आपको वहाँ नहीं अपने मन में ही मिल जाए !
चलते फिरते विचार – आज के दौर में ब्रह्म पुराण
आज का डिजिटल युग है गूगल पर ब्रह्म पुराण खोजिए हिंदी अंग्रेजी अनुवाद मिल जाएगा, गीता प्रेस से खरीदिए, ऑनलाइन लेख पढ़िए ! शोधकर्ता और लेखक नए नए सवाल पूछ रहे हैं सामाजिक न्याय, महिला शिक्षा, पर्यावरण चेतना, धर्मनिरपेक्षता ! खुद को बदलने, समझने और आगे बढ़ने का रास्ता ब्रह्म पुराण में ढूँढने लगे हैं !
अगर कभी मंदिर जाएँ, किसी तीर्थ पर स्नान करें, या पवित्र स्थलों की यात्रा करें तो मन में एक बार सोचिए क्या सच में पवित्रता सिर्फ परंपरा से आती है ? ब्रह्म पुराण कहता है कि असली पवित्रता मन और कर्म से आती है !
अक्सर लोग कहते हैं ब्रह्म पुराण सिर्फ ग्रंथ है ! लेकिन धीरे धीरे समझ आता है कि यह कोई किताब नहीं वल्कि एक जीती जागती धरोहर है ! घर के मंदिर में दीपक जलाते हुए, पिता के आँखों में धर्म के सवाल, माँ की पूजा में भक्ति की झलक ये सब ब्रह्म पुराण के कारण हैं !
अगर आप सच में इस ग्रंथ को एक नई नजर से पढ़ें तो पाएँगे कि ब्रह्म पुराण धर्म, समाज, संस्कृति, कला, विचार, सवाल सबका जवाब देता है ! यह बुद्धि ज्ञान की किताब है पर प्रेम और भावना का भी समंदर है !
तो अगली बार जब आप किसी मंदिर जाएँ तो ब्रह्म पुराण सुनें या पढ़ें और अपने भीतर झाँकिए, कौन जाने भारत की आत्मा की धड़कन आपको सुनाई दे जाए !