वामन पुराण : दान, विनम्रता और आस्था की अनूठी दास्ताँ
जब हम वामन और बलि की कथा पढ़ते हैं तो लगता है मानो एक दानवीर राजा और भगवान के बीच आस्था की कसौटी चल रही हो जहाँ एक ओर बलि का विशाल दिल है और दूसरी ओर वामन का विनम्र पराक्रम ! इस कहानी में दान का असली अर्थ नापने की कोशिश है जहां तीन पग भूमि की भिक्षा ने पूरा ब्रह्माण्ड समेट लिया ! वामन पुराण सिर्फ एक धर्मग्रंथ नहीं है बल्कि जीवन की गहरी समझ देने वाली वह पुस्तक है जो हमें सिखाती है कि सच्ची महानता कहाँ छिपी है !
कहानी शुरू होती है नारद मुनि और पुलस्त्य ऋषि की बातचीत से जब नारद जी पूछते हैं, ” यह वामन कौन है ? ” और पुलस्त्य मुनि हँसते हुए बताते हैं कि ये वही विष्णु हैं जो बंजर धरती पर बौने ब्राह्मण बनकर आएंगे ! विश्वास करना मुश्किल लगता है पर जब हम इसे मनन करते हैं तो युगों पुरानी इस कथा में आज भी जीवन के अद्भुत सबक छिपे हैं !
वामन पुराण का रचनाकाल लगभग नौ ( 9 )वीं से ग्यारह ( 11 )वीं शताब्दी माना जाता है ! यह वही समय था जब भारतीय समाज में धर्म और दर्शन के नए आयाम विकसित हो रहे थे ! इस पुराण में जो कहानियाँ हैं वे सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं लिखी गईं बल्कि समाज को एक दिशा देने के लिए रची गईं ! जब मैं इन पन्नों को पलटता हूँ तो मुझे लगता है कि तब के लेखकों ने कितनी सूझ बूझ से इंसानी स्वभाव को समझा था !
बलि, प्रह्लाद का पौत्र और दानवीर असुरराज, अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय से तीनों लोकों पर राज कर रहा था ! उसके राज्य में खुशहाली थी पर देवता चिंतित थे ! हमने भी कभी ना कभी देखा होगा कि जब अन्दरूँ की शक्ति बढ़े तो अहंकार कैसे जन्म लेता है ! लेकिन बलि का मामला अलग था ! वह शक्तिशाली था पर अहंकारी नहीं था ! यह बात उसे आम राजाओं से अलग बनाती थी !
इसी अहंकार को चुनौती देने आया वामन एक छोटे आकार में पर दिल में विराटता लिए हुए ! कभी कभी मुझे लगता है कि आज के नेताओं और राजनीतिज्ञों को बलि से सीख लेनी चाहिए ! आखिर कितने लोग हैं जो सत्ता में होकर भी विनम्र रह सकते हैं ? बलि की खासियत यही थी कि उसने कभी अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल नहीं किया !
राजा बलि की दानशीलता के किस्से आज भी केरल में सुनाए जाते हैं ! ओणम के त्योहार के दौरान जब परिवार इकट्ठे होते हैं और पारंपरिक भोज तैयार करते हैं तो वे यही कहानी दोहराते हैं कि कैसे एक राजा ने अपना सब कुछ दान में दे दिया था ! यह सिर्फ धार्मिक कहानी नहीं है बल्कि एक जीवन शैली का संदेश है !
ताबीज और कमंडल लिए वामन यज्ञ में उपस्थित होता है और मात्र तीन पग भूमि की भिक्षा मांग लेता है ! कोई सोच ही नहीं सकता कि यह छोटी सी मांग पूरी दुनिया के भाग्य का फैसला करेगी ! बलि अपने गुरु शुक्राचार्य की सलाह के बावजूद उस दान में डूब जाता है ! शुक्राचार्य ने चेतावनी दी थी, ” यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है ! ” पर बलि कहता है, ” गुरुजी अगर यह साक्षात् विष्णु भी हों तो मैं दान देने से पीछे नहीं हटूंगा ! “
जब वामन पहला पग रखता है, तो पृथ्वी समा जाती है, दूसरे पग में स्वर्ग और तीसरा पग ? बलि अपना सिर प्रस्तुत कर देता है ! यह दृश्य एक आदर्श त्याग का प्रतीक बन जाता है ! मुझे लगता है यहाँ सिर्फ दान की बात नहीं हो रही बल्कि वचन की पवित्रता की बात हो रही है ! आज के समय में जब लोग छोटे छोटे वादों को भूल जाते हैं तो बलि का यह उदाहरण हमें सोचने पर मजबूर करता है !
त्रिविक्रम रूप धारण करने के बाद वामन ने जो विराट रूप दिखाया उसे देखकर सभी देवता, असुर और इंसान हैरान रह गए ! यह सिर्फ भौतिक विस्तार नहीं था बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश था कि परमात्मा की शक्ति असीमित है ! लेकिन सबसे खूबसूरत बात यह है कि भगवान ने बलि को सिर्फ दंड नहीं दिया बल्कि उसकी भक्ति देखकर उसे सुतल लोक का राज्य दिया और यह वरदान भी दिया कि अगले मन्वंतर में वह इंद्र बनेगा !
रास्ते में वामन पुराण हमें शिव और विष्णु दोनों के रूपकों से भी रूबरू कराता है ! यह पुराण की खास बात है कि यह किसी एक देवता को दूसरे से ऊपर नहीं दिखाता ! कहते हैं एक कथा में शिव के पांचवें सिर को काटा गया जिससे उनके मस्तक पर कपाल चढ़ गया ! वे माफी मांगने चलते वामन के पास पहुंचे ! इस माफी के आदान प्रदान को पढ़कर मन में सद्भाव की लहर उठती है केवल एक ही शक्ति ही ऐसी हो सकती है जो स्वयं अपने अनुयायियों के अपराधों को भी माफ कर दे !
दक्ष यज्ञ की कहानी भी इसी पुराण में मिलती है ! जब दक्ष ने शिव का अपमान किया और सती ने अपने पति के अपमान को सह नहीं पाकर हवन कुंड में छलांग लगा दी तो शिव का क्रोध देखने लायक था ! पर यहाँ भी अंत में प्रेम और करुणा की जीत होती है ! सती पार्वती बनकर फिर से शिव की पत्नी बनती हैं ! यह कहानी हमें सिखाती है कि गुस्सा और बदला कभी कोई समस्या का समाधान नहीं हैं !
पुराण धीरे धीरे हमें जीवन के चार आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की ओर ले जाता है ! यहाँ हर आयाम का एक अलग रंग है : शिक्षा से भरपूर ब्रह्मचर्य, जिम्मेदारियों से परिपूर्ण गृहस्थ, संयमित वानप्रस्थ और फिर संसार त्यागकर समाधि की राह चुनता संन्यास ! हमें भी आज यह सोचना चाहिए कि कब हम जीवन के इन चरणों को संतुलित कर पा रहे हैं !
आज की भागदौड़ में अक्सर लोग सिर्फ गृहस्थ आश्रम में फंसकर रह जाते हैं ! न तो वे ब्रह्मचर्य में पूरी तरह पढ़ाई करते हैं, न ही बुढ़ापे में वानप्रस्थ और संन्यास की तैयारी करते हैं ! वामन पुराण यह सिखाता है कि जीवन एक पूरी यात्रा है सिर्फ कमाई धमाई का खेल नहीं !
वर्णाश्रम व्यवस्था के बारे में भी पुराण में विस्तार से लिखा है ! हालांकि आज यह व्यवस्था कई बार विवादों में रहती है पर पुराण में इसका मतलब सामाजिक सेवा और कर्तव्य बोध से था जातिगत भेदभाव से नहीं ! एक ब्राह्मण का कर्तव्य ज्ञान देना था, क्षत्रिय का सुरक्षा करना, वैश्य का व्यापार संभालना और शूद्र का सेवा करना ! यह सब मिलकर एक संतुलित समाज बनाते थे !
वामन पुराण में विंध्याचल से लेकर सह्य पर्वत, कुरुक्षेत्र से लेकर महेंद्र पर्वत तक की यात्राओं का वर्णन मिलता है ! इन सफ़रों में नदियों की कल कल ध्वनि, जंगलों की स्याह चूनर और पत्थरों की पुरानी गूंज है ! पढ़ते पढ़ते मन में भी तीर्थ जाने का उत्साह जगता है जहाँ शांत पानी में प्रार्थना करते हुए हम भूल जाते हैं अपनी रोजमर्रा की कोलाहल भरी चिंताएँ !
सरस्वती नदी की महिमा का खास उल्लेख है इस पुराण में ! आज भले ही सरस्वती नदी का भौतिक अस्तित्व विवाद में हो पर पुराण में इसे ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक माना गया है ! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि का भी विशेष महत्व है जहाँ कई युगों से लोग स्नान करने और पुण्य कमाने आते रहे हैं !
पुराण में विभिन्न जनपदों का भी उल्लेख है अंग, बाह्लीक, केरल, काम्बोज और कई अन्य प्रांत ! यह बताता है कि उस समय भारत एक एकीकृत सांस्कृतिक इकाई था जहाँ विविधता में एकता थी ! हर प्रांत की अपनी खासियत थी पर सबको जोड़ने वाला धागा धर्म और संस्कृति का था !
वामन पुराण में कई व्रतों का उल्लेख है जिसमें कालाष्टमी व्रत प्रमुख है ! ये व्रत सिर्फ खाना न खाने के लिए नहीं थे बल्कि मन को शुद्ध करने और अनुशासन सिखाने के लिए थे ! आज के समय में जब लोग डाइटिंग और फास्टिंग की बात करते हैं तो मुझे लगता है कि पुराने समय के व्रत कहीं ज्यादा वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक थे !
त्योहारों का भी गहरा अर्थ था ! ये सिर्फ मौज मस्ती के दिन नहीं थे बल्कि समुदाय को जोड़ने और सामाजिक संदेश देने के अवसर थे ! ओणम त्योहार इसका बेहतरीन उदाहरण है जहाँ अमीर गरीब सब एक साथ भोजन करते हैं और बलि राजा की दानशीलता को याद करते हैं !
आज, तेज तर्रार शहरों और इलेक्ट्रॉनिक बैठकों के बीच, वामन पुराण की सरल बातें दानशीलता, विनम्रता और वचनबद्धता हमें जगाने की तरह हैं ! क्या हमारी राजनीति में भी ऐसा त्याग और भरोसा दिख सकता है ? शायद नहीं पूरी तरह, पर व्यक्ति से लेकर समाज तक सच्चे नायक की तलाश हर युग में जरूरी है !
कॉर्पोरेट जगत में अक्सर देखा जाता है कि लोग छोटी शुरुआत से बड़ी कंपनियां खड़ी करते हैं ! वामन की कहानी यही सिखाती है कि शुरुआत चाहे कितनी भी छोटी हो, अगर नीयत सच्ची है तो सफलता मिल ही जाती है ! लेकिन यहाँ एक और सबक है सफलता के बाद विनम्र रहना ! बलि ने यही किया था इसलिए भगवान ने उसे दंड नहीं बल्कि पुरस्कार दिया !
पर्यावरण की दृष्टि से भी यह पुराण आज बहुत प्रासंगिक है ! नदियों, पर्वतों और जंगलों की महिमा का जो वर्णन है वह हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीने की सीख देता है ! आज जब जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है तो पुराण के ये संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं !
वामन की मूर्तियां आज भी भारतीय मंदिरों में देखने को मिलती हैं ! इन मूर्तियों में कलाकारों ने वामन के छोटे कद और विराट व्यक्तित्व दोनों को दिखाने की कोशिश की है ! त्रिविक्रम की मूर्तियां तो और भी प्रभावशाली हैं जहाँ एक ही पत्थर में छोटा वामन और विशाल त्रिविक्रम दोनों नजर आते हैं !
भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में भी वामन की कहानी कई रूपों में मिलती है ! तमिल में ” त्रिविक्रम चरित्र ” और तेलुगु में ” वामन चरित्र ” जैसी कृतियां लोकप्रिय हैं ! बंगाली साहित्य में भी वामन बलि की कथा को नए अंदाज में प्रस्तुत किया गया है !
मुझे लगता है वामन पुराण का सबसे बड़ा संदेश यही है कि शक्ति का सही उपयोग विनम्रता और धर्म के साथ होना चाहिए ! बलि ने सत्ता में रहते हुए भी अहंकार नहीं चुना, और वामन ने चमक दमक नहीं बल्कि सहजता और दान से अपनी महानता दिखाई ! यही बात इसे आज भी हमारे जीवन के लिए प्रासंगिक बनाती है !
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि अगर आज के समय में बलि जैसा कोई नेता होता तो दुनिया कितनी बेहतर होती ! ऐसा व्यक्ति जो अपना सब कुछ लोगों की खुशी के लिए दे दे, और फिर भी घमंड न करे ! यह सिर्फ एक कल्पना लग सकती है पर वामन पुराण यही सिखाता है कि यह कल्पना हकीकत बन सकती है !
व्यक्तिगत जीवन में भी जब मैं किसी मुश्किल का सामना करता हूँ तो वामन और बलि की कहानी याद आती है ! वामन का धैर्य और बलि का त्याग दोनों ही जीवन के कठिन समय में रास्ता दिखाते हैं ! छोटी शुरुआत से घबराना नहीं चाहिए, और बड़ी सफलता मिलने पर अकड़ना भी नहीं चाहिए !
वामन पुराण केवल पुरानी दास्ताँ नहीं ; यह हमारे भीतर की मानवता को जगाने वाली एक शाश्वत प्रेरणा है ! इसकी कहानियों में इतनी गहराई है कि हर बार पढ़ने पर कुछ नया मिलता है ! यह ग्रंथ हमें याद दिलाता है कि जीवन में सिर्फ पाना ही महत्वपूर्ण नहीं है देना भी उतना ही जरूरी है !
इसलिए, जब अगली बार हम किसी रिश्ते, किसी सामाजिक भूमिका या किसी कठिन परीक्षा में उलझें तो यह कथा हमें याद दिलाएगी कि असली पराक्रम नापने में नहीं, देने और समर्पण में है ! वामन पुराण की यही सबसे बड़ी देन है यह हमें बेहतर इंसान बनने की राह दिखाता है और यही कारण है कि यह आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना हजारों साल पहले था !