जब भी मैं भारतीय पुराणों के बारे में सोचता हूं तो मत्स्य पुराण का नाम मन में सबसे पहले आता है ! यह सिर्फ एक धार्मिक किताब नहीं है यह हमारे पूर्वजों का छोड़ा गया एक अद्भुत विश्वकोश है ! भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य ( मछली ) की कथा से शुरू होने वाला यह ग्रंथ हमें बताता है कि कैसे एक छोटी सी मछली ने पूरी दुनिया को बचाया था ! आज भी जब मैं इसके चौदह हजार ( 14000 ) श्लोकों को पढ़ता हूं तो लगता है जैसे हमारे पुराने बुजुर्ग हमसे बात कर रहे हों !
मत्स्य पुराण कब लिखा गया यह सवाल मुझे हमेशा दिलचस्प लगता है ! विद्वान इसकी सटीक तारीख तो नहीं बता पाते लेकिन ज्यादातर का मानना है कि यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच लिखा गया ! डॉ. वी.आर.आर. दिक्षितार जैसे प्रसिद्ध विद्वान का कहना है कि यह चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक की लंबी अवधि में तैयार हुआ !
सोचिए उस जमाने में जब कागज भी नहीं था हमारे पूर्वजों ने कितनी मेहनत से इसे संजोया होगा ! आंध्र राजवंश के यज्ञश्री के समय में ( लगभग एक सौ तिरानवे ( 193 ) ईस्वी ) इसका संकलन शुरू हुआ और उनतीस ( 29 ) साल बाद तक चलता रहा ! यह बात पुराण में खुद लिखी है कितना दिलचस्प है न ?
मत्स्य पुराण में कुल दो सौ इक्यानवे ( 291 ) अध्याय हैं ! मूल में बीस हज़ार ( 20,000 ) श्लोक थे, पर आज हमारे पास चौदह हज़ार ( 14,000 ) बचे हैं ! फिर भी यह इतना भरपूर है कि पढ़ते समय लगता है जैसे पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में आ गई हो !
इसमें सब कुछ है सृष्टि की शुरुआत की कहानी, राजा महाराजाओं के किस्से, मंदिर कैसे बनाएं, क्या दान करें, कौन सा व्रत रखें ! मुझे तो कभी कभी लगता है कि यह किसी प्राचीन गूगल की तरह है जो भी सवाल पूछो, जवाब मिल जाता है !
अब आइए उस कहानी पर जिसकी वजह से इस पुराण का नाम पड़ा ! यह कहानी मुझे हमेशा रोमांचित करती है ! कल्पना करिए पूरी पृथ्वी पानी में डूब गई है चारों तरफ अथाह जल ही जल ! ऐसे में एक छोटी सी मछली आती है जो बड़ी होते होते इतनी विशाल हो जाती है कि उसके सींग से पूरी नाव बांधी जा सकती है !
यह कहानी आज की भाषा में कहें तो एक महान ‘ रेस्क्यू ऑपरेशन ‘ है ! जब हयग्रीव नामक असुर ने वेदों को चुराया और ब्रह्मा जी सो गए, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण किया ! उन्होंने न सिर्फ वेदों को बचाया बल्कि राजा सत्यव्रत ( जो बाद में मनु कहलाए ) और सभी जीवों को भी बचाया !
मुझे लगता है कि यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कैसे भगवान हर मुसीबत में हमारी मदद के लिए आते हैं चाहे वह कितना भी छोटा रूप क्यों न हो !
इस पुराण में सावित्री सत्यवान की जो कहानी है वह मेरे दिल को छू जाती है ! आज भी जब वट सावित्री व्रत की कथा सुनते हैं तो सावित्री के साहस की दाद देनी पड़ती है ! सोचिए एक स्त्री ने यमराज से बहस की और जीत भी गई !
राजा अश्वपति की बेटी सावित्री ने जानबूझकर सत्यवान से शादी की यह जानते हुए कि उसकी उम्र सिर्फ एक साल की है ! जब यमराज आए तो सावित्री ने अपनी बुद्धि से उन्हें ऐसे वरदान दिलवाए कि यमराज को सत्यवान को जिंदा करना पड़ा !
यह कहानी हमें बताती है कि स्त्री शक्ति केवल पूजा का विषय नहीं है यह वास्तविक जीवन का आधार है ! आज की औरतें भी इससे प्रेरणा ले सकती हैं !
मत्स्य पुराण पढ़कर मुझे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की हुई कि उस जमाने में हमारे पूर्वज वास्तु और आर्किटेक्चर के कितने बड़े जानकार थे ! इसमें आठ पूरे अध्याय सिर्फ इस बात पर हैं कि घर, मंदिर और महल कैसे बनाए जाएं !
अठारह ( 18 ) महान आर्किटेक्ट्स के नाम दिए गए हैं भृगु, विश्वकर्मा, मय, नारद और भी कई ! स्तंभों के पांच प्रकार, मूर्ति बनाने के नियम, तालमान की प्रणाली सब कुछ इतने विस्तार से लिखा है कि आज के इंजीनियर भी दंग रह जाएं !
मुझे लगता है कि आज भी हमारे मंदिरों की खूबसूरती इन्हीं नियमों की देन है !
इतिहास के शौकीनों के लिए तो यह पुराण सोने की खान है ! इसमें प्राचीन भारत के राजवंशों की पूरी फेहरिस्त है ! सूर्यवंश से लेकर चंद्रवंश तक, मौर्य साम्राज्य से लेकर गुप्त काल तक सब कुछ का हिसाब किताब मिलता है !
बिम्बिसार, अजातशत्रु जैसे मशहूर राजाओं का जिक्र पढ़कर लगता है कि यह कोई इतिहास की किताब है ! खासकर आंध्र ( सातवाहन ) राजवंश के बारे में तो इसमें इतनी सटीक जानकारी है कि इतिहासकार इसे बहुत भरोसेमंद मानते हैं !
धर्म की बात करें तो यह पुराण किसी एक देवता तक सीमित नहीं है ! विष्णु, शिव और देवी सबकी महिमा इसमें है ! काशी और प्रयाग की महत्ता पढ़कर मन तीर्थयात्रा का हो जाता है !
सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें सिर्फ पूजा पाठ नहीं बल्कि जिंदगी जीने के व्यावहारिक नुस्खे भी हैं ! जैसे यह कहना कि ” आलसी आदमी भूखा मरता है ” और ” भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं होता ” यह तो आज की भाषा में कहें तो पूरा मोटिवेशनल स्पीच है !
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस पुराण में दक्षिण भारत के कई जगहों का जिक्र है ! रामेश्वरम, श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली इन सबके नाम पढ़कर लगता है कि यह पुराण वहीं लिखा गया होगा !
अब सवाल यह है कि इक्कीस ( 21 )वीं सदी में इस पुराण की क्या जरूरत है ? मेरे विचार में, आज की तेज तर्रार जिंदगी में यह हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है !
मत्स्य अवतार की कहानी हमें सिखाती है कि मुसीबत के समय हिम्मत न हारें ! सावित्री की कहानी बताती है कि अगर इरादा पक्का हो तो मौत को भी हराया जा सकता है ! वास्तुशास्त्र आज भी घर बनाने में काम आता है !
सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें दी गई नैतिक शिक्षाएं आज भी उतनी ही ताज़ा लगती हैं !
जब मैंने पहली बार मत्स्य पुराण पढ़ा था तो मुझे लगा था कि यह सिर्फ धार्मिक कहानियों का संग्रह है ! लेकिन जैसे जैसे इसमें गहरे उतरता गया, एहसास हुआ कि यह तो पूरी भारतीय सभ्यता का विश्वकोश है !
यहां हर पृष्ठ पर कुछ न कुछ नया मिलता है ! कभी इतिहास की झलक, कभी विज्ञान का स्पर्श, कभी फिलॉसफी की गहराई ! मुझे लगता है कि अगर कोई भारत को समझना चाहता है तो मत्स्य पुराण एक उत्तम शुरुआत है !
मत्स्य पुराण केवल अतीत का दर्पण नहीं है यह भविष्य के लिए भी एक मार्गदर्शक है ! जब मैं इसे पढ़ता हूं तो लगता है कि हमारे पूर्वजों ने कितनी दूरदर्शी से सोचा था ! उन्होंने सिर्फ अपने समय के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह खजाना छोड़ा है !
आज जब हम प्रौद्योगिकी की दुनिया में खो जाते हैं तो यह पुराण हमें याद दिलाता है कि असली ज्ञान क्या होती है ! यह हमें बताता है कि प्रगति का मतलब सिर्फ आगे बढ़ना नहीं बल्कि अपनी जड़ों को मजबूत रखते हुए आगे बढ़ना है !
मेरी सलाह है कि हर भारतीय को कम से कम एक बार मत्स्य पुराण जरूर पढ़ना चाहिए ! यह सिर्फ एक किताब नहीं है यह हमारी संस्कृति का डीएनए है जो हमें बताता है कि हम कौन हैं और कहां से आए हैं !