कभी कभी सोचता हूँ अगर विदुर आज होते, तो क्या उन्हें कॉर्पोरेट बोर्डरूम में सबसे ज्यादा सुना जाता ? मुझे लगता है, हाँ ! क्योंकि उनके सूत्र सिर्फ राजमहलों के लिए नहीं थे ; वे उन गलियारों के लिए थे जहाँ फैसले होते हैं घर, दफ्तर, संसद, स्टार्टअप की मीटिंग रूम, सब जगह !
और सच कहूँ तो, यह बात मुझे बार बार चकित करती है हजारों साल पहले कही गई बातें आज के टैक्स सिस्टम, एथिक्स कमेटी और लीडरशिप कोचिंग पर भी लागू हो सकती हैं ! क्या यह अद्भुत नहीं है ?
महाभारत के उद्योग पर्व में धृतराष्ट्र और विदुर का संवाद है ! एक राजा, जो असमंजस में है ! एक मंत्री, जो सच कहने की हिम्मत रखता है ! शांति दूत आ चुके हैं ! युद्ध की गंध हवा में है ! उसी कगार पर, विदुर नीति जन्म लेती है साफ, तीखी, और कहीं कहीं कड़वी भी !
कभी कभी लगता है अगर धृतराष्ट्र ने सच में सुना होता, तो क्या महाभारत का युद्ध टल जाता ? यह सवाल मुझे बेचैन भी करता है और विदुर की दूरदर्शिता के प्रति और विनीत बना देता है !
विदुर निष्पक्ष, संयमी, और बेहद स्पष्ट ! दरबार में चाटुकारों के बीच एक सच्चा सलाहकार ! वे पद से नहीं, चरित्र से ऊँचे थे ! और मुझे उनकी एक बात खास लगती है वे बात घुमाते नहीं ! हित की बात सीधे कहते हैं ! भले कड़वी लगे !
कभी कभी मैं उनके बारे में सोचता हूँ तो एक ही वाक्य कानों में गूंजता है ” जो स्वयं पर शासन नहीं कर सकता, वह दूसरों पर कैसे करेगा ? ” यह लाइन अकेले पूरी नीति का सार है ! बस यही !
विदुर नीति सूत्रों में है छोटी, सटीक, बिना अलंकरण की सलाह ! पढ़ते समय मुझे ऐसा लगा जैसे कोई अनुभवी मेंटर धीरे धीरे कंधे पर हाथ रखकर कह रहा हो धीरे चलो, पर सही चलो ! और हाँ, कहीं कहीं उन्होंने कठोरता भी दिखाई है ! उस कठोरता में करुणा छिपी है हितकारी करुणा !
क्रोध, लोभ, मोह, इन तीन शब्दों में ही नीति का आधा विज्ञान छिपा है !
मुख्य सूत्र
- नीति का केंद्र लोककल्याण है ! निजी लोभ इसमें रेत की तरह घुसता है और मशीन जाम कर देता है !
- धर्म के बिना अर्थ दिशाहीन हो जाता है ! अर्थ के बिना धर्म ठूँठ ! संतुलन चाहिए यही खेल है !
- संगति और सलाहकार इंजन यही हैं ! गलत सलाह, सही इंजन को भी जाम कर देती है !
- आत्मसंयम, गोपनीयता, समय बोध सफलता का त्रिवेणी संगम ! छोटा वाक्य, बड़ा सबक !
- क्रोध के क्षण में मौन ! शंका के क्षण में तथ्य ! बस ये दो नियम याद रहें तो आधा जीवन सरल हो जाता है ! मुझे यह सूत्र सबसे व्यावहारिक लगता है !
मैं जब सार्वजनिक नीति पर सोचता हूँ तो विदुर की बातें चुभती भी हैं और चैतन्य भी करती हैं ! शासक का पहला दायित्व ? भय मुक्त न्याय ! क्योंकि भय अर्थ चक्र को जाम कर देता है, और प्रतिभा पलायन करती है आज भी !
- कर व्यवस्था सरल और स्थिर होनी चाहिए ! अनिश्चितता सबसे बड़ा कर है ! कंपनियाँ भागती नहीं, भ्रम उन्हें भगाता है !
- सलाहकारों का चयन चरित्र और सत्यवाद के आधार पर ! चापलूसी, नेतृत्व को अंधा बना देती है ! यह हर ऑफिस में दिखता है !
- दंड नीति संतुलित हो ! प्रतिशोध नहीं, सुधार लक्ष्य हो ! वरना डर बनेगा, अनुशासन नहीं !
- जमीन से जुड़ाव ! महल से शासन, पर सड़कों पर समझ ! भारत में तो यह नियम बिल्कुल नितांत सच है !
- संस्थाएँ व्यक्तियों से बड़ी हों ! व्यक्ति बदलें, नियम टिके रहें ! यही स्थायित्व है !
कभी मन में सवाल उठता है क्या हम नेताओं से बहुत ज्यादा उम्मीद करते हैं ? शायद ! पर विदुर का जवाब साफ है नेतृत्व अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व है !
ये हिस्सा मुझे सबसे ज्यादा अपनी दिनचर्या में मदद करता है ! छोटी छोटी आदतें, बड़े नतीजे ! और कहीं न कहीं, असली युद्ध भीतर ही तो है !
- क्रोध नियंत्रण : एक खराब वाक्य, वर्षों की कमाई मिटा देता है ! मैंने यह गलती की है ! आप ने भी शायद की होगी ! समाधान थोड़ा ठहरना !
- दिनचर्या : अनियमितता अवसर खा जाती है ! छोटी सुबह, बड़ी उपलब्धि ! साधारण पर सच !
- आहार संयम : असंयम बुद्धि को धुंधला करता है ! संयम, दृष्टि साफ करता है !
- सत्य और साहस : सत्य रक्षा करता है, पर साहस उसके बिना कमजोर है ! दोनों साथ हों, तभी खेल बनता है !
यहाँ विदुर की बातें आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक लगती हैं ! आजकल जब स्टार्टअप्स जल्दी जल्दी निवेश जला देते हैं, उनकी चेतावनी मुझे अक्सर याद आती है ” अनावश्यक ऋण भविष्य पर बोझ है ! “
- अर्जन में नैतिकता : गलत पैसे में छिपा होता है छिपा हुआ डर ! चैन छिनता है ! अंततः लागत बहुत महँगी पड़ती है !
- बचत और दान : आपदा के लिए कुशन ! समाज के लिए योगदान ! दान सिर्फ दया नहीं, डिजाइन भी है असमानता का संतुलन !
- ऋण नीति : उधार लेते समय नकदी प्रवाह, ब्याज जोखिम, चक्रवृद्धि का ईमानदार हिसाब ! रोमांच नहीं, विवेक !
- व्यय : अपव्यय और कृपणता दोनों अतियाँ ! बीच का रास्ता ही जीवन को सुंदर बनाता है !
कभी कभी सोचता हूँ क्या हम धन को बहुत गंभीरता से ले लेते हैं ? फिर याद आता है धन साधन है ! लक्ष्य नहीं ! बस इतनी सी री सेट काफी है !
यहाँ विदुर बेहद मानवीय हो जाते हैं ! और सटीक भी !
- असली मित्र वही जो विपत्ति में साथ रहे ! सुख में भीड़, संकट में पहचान !
- जो हर रिश्ते को लेन देन बना देता है थोड़ी दूरी ! ठंडा सच !
- गोपनीयता पूँजी है ! रहस्य कम लोगों के पास, ज़्यादा सुरक्षित !
- मीठी बोली अच्छी है ! पर हितकारी सत्य बेहतर है ! कभी कभी थोड़ी कड़वाहट भी हित करती है !
कभी कभी मैं खुद से पूछता हूँ क्या मैं अपने मित्रों को सच बोल पाता हूँ ? हर बार नहीं ! पर कोशिश जारी है !
वाणी तेज है ! मौन ढाल ! ये तुलना मुझे बहुत पसंद है !
- सही बात, गलत समय प्रतिरोध ! गलत बात, सही समय भी प्रतिरोध ! समय बोध ही कुंजी !
- कम बोलना बुरा नहीं ! रहस्य और सम्मान दोनों बचते हैं !
- कटु सत्य भी विनम्रता के लिफाफे में ! यह कूटनीति नहीं, संवेदनशीलता है ! फर्क बड़ा है !
एक छोटा प्रयोग मैंने किया मीटिंग में बोलने से पहले 3 सेकंड रुकना ! नतीजा ? कम शब्द, ज्यादा असर !
मेरी पसंदीदा सीख निर्णय टालने से निर्णय का अधिकार किसी और को मिल जाता है ! और फिर हम शिकायत करते रह जाते हैं !
- पूर्वतैयारी : शांति काल में बनाई योजना, संकट काल में प्राण रक्षक बनती है !
- संकेत पठन : छोटी दरारें देखना सीखें ! दीवार गिरने से पहले !
- धैर्य और दृढ़ता : हर लड़ाई स्प्रिंट नहीं ! मैराथन है ! साँस लंबी रखें !
और हाँ, कभी कभी हार भी स्वीकारें ! वापसी की रणनीति तभी बनती है !
नेतृत्व, पद से पहले चरित्र की परीक्षा है ! यह बात मैं जितनी बार पढ़ता हूँ, उतनी बार अंदर तक सुनाई देती है !
- निष्पक्षता : अपने पराए का भेद न्याय में नहीं, मन में होता है ! न्याय से उसे बाहर रखें !
- पारदर्शिता : कारण दर्ज करें ! फैसलों के पीछे की सोच साझा करें ! भरोसा इसी से बनता है !
- शौर्य और करुणा : निर्णय में साहस ! क्रियान्वयन में करुणा ! यह संतुलन दुर्लभ है, पर संभव !
- सीखने की भूख : जो नेता सीखना छोड़ देता है, सुनना भी छोड़ देता है ! और तब वह अकेला पड़ जाता है !
ईमानदारी से कहूँ मुझे यही हिस्सा सबसे कठिन लगता है ! क्योंकि यहाँ कोई शॉर्टकट नहीं है !
अब जरा आज की भाषा में अनुवाद ! थोड़ी असमान, पर दिल से !
- कॉर्पोरेट गवर्नेंस : स्वतंत्र बोर्ड, हित संघर्ष का स्पष्ट प्रकटीकरण, दीर्घकालिक मूल्य पर जोर यह सब विदुर के ” योग्य परिषद + न्याय केन्द्रित निर्णय ” का आधुनिक रूप है !
- टीम और फीडबैक : चीनी लेप नहीं ! तथ्य ! कठोर भी हो, पर हितकारी ! फीडबैक संस्कृति, अहं से ऊपर !
- व्यक्तिगत विकास : समय प्रबंधन, क्रोध संयम, वित्तीय अनुशासन आज की उत्पादकता का मूल !
- सार्वजनिक नीति : सरल टैक्स, भरोसेमंद न्याय प्रणाली, संस्थागत स्वायत्तता यही विकास का टिकाऊ नुस्खा है ! बाकी शोर है !
सोचिए कितना सीधा है यह सब ! फिर भी कितना कठिन !
हर ग्रंथ अपने समय की उपज है ! विदुर नीति भी ! इसलिए कुछ बातें आज के समानाधिकार, जेंडर संवेदनशीलता या लोकतांत्रिक पारदर्शिता के मानकों से मेल नहीं खातीं ! मैं इसे दो तरह से समझता हूँ :
- सिद्धांत स्थायी हैं सत्य, न्याय, संयम, दूरदर्शिता ! पर रूप बदलता है ! आज के संस्थागत ढांचे में उन सिद्धांतों का नया अनुप्रयोग चाहिए !
- सन्दर्भ महत्त्व रखते हैं ! दरबारी सुरक्षा चिंताओं से उपजी कुछ कठोर सलाहें आज सामाजिक नैतिकता नहीं बन सकतीं ! उद्देश्य हित सुरक्षा और विवेक कायम रखें, रूप बदल लें !
यही मेरी पढ़ने की कुंजी है केंद्र बचाइए, खोल बदलिए !
संक्षिप्त सूत्र
- जो अपने ऊपर शासन करता है, वही न्यायपूर्ण शासन देता है !
- धर्म विरुद्ध अर्जित अर्थ, अंततः भय बनकर लौटता है !
- क्रोध में मौन ! शंका में तथ्य !
- मित्रता की असली परीक्षा विपत्ति !
और अंत में एक निजी स्वीकारोक्ति मैं ये सूत्र रोज नहीं निभा पाता ! पर मैं रोज कोशिश करता हूँ ! शायद यही विदुर नीति का असली प्रभाव है : वह हमें बेहतर बनने की बेचैनी देती है !