. दैनिक शाखा का महत्व
(शाखा सभी कार्यों का अधिष्ठान)
- दैनिक मिलन की अनिवार्य कार्यपद्धति का विकास संघ ने किया है।
- संगठन का स्वरूप देखने नित्य एकत्रित होना।
- विकास के लिए एवं स्वाभाविक दोषों से ऊपर उठने के लिए निरंतर संस्कार, अभ्यास एवं अध्ययन के अनुकूल सत्संग आवश्यक।
- कम से कम एक घंटा संस्कार की योजना (अकाले में भी हल चलाना जिससे हल चलाना न जाए, देवता पूजा, बर्तन माझने का उदाहरण)।
- यह संस्कार नित्य और निरंतर मिलने चाहिए। अतः शाखा पर दैनिक उपस्थिति आवश्यक। इसी हेतु सभी बैठकों में वृत्त लेना।
- दैनिक कार्यक्रमों का महत्व – उत्साह, पोषण, निर्भयता, अनुशासन, सूक्ष्मदृष्टि, अखंड रूप से कार्य करना, नियमितता, परस्पर सहयोग, आत्मविश्वास आदि गुणों का निरंतर विकास शाखा पद्धति से होता है।
- संस्कारों के लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता (जलती अंगीठी में ठंडा काला कोयला ढकने लगता है, बाहर निकालने पर गर्म कोयला भी ठंडा पड़ जाता है)।अंगीठी के अंदर और बाहर के वातावरण का प्रभाव – पू. गुरुजी | संघ स्थान का तेजस्वी वातावरण उपयुक्त संस्कार देने में सक्षम।
8. पू. पू. गुरुजी – पेड़ की जड़ को सींचना अर्थात् पूरे पेड़ का विकास, शाखा को सबल करेंगे तो सब कार्य संबल होंगे।
9. शाखा सभी कार्यों का अधिष्ठान इसलिए है क्योंकि प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यक योग्य-समर्पित-ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण इस पद्धति से ही संभव हो पाता है। शाखा सभी कार्यों की केंद्र है।
10. संघ पावर हाउस की तरह है। संघ कुछ नहीं करेगा, स्वयंसेवक सब कुछ करेगा।
पू. पू. बालासाहेब देवरस – संघ माने शाखा, शाखा माने कार्यक्रम, कार्यक्रम माने कार्यकर्ता।
11. संस्थान के बाहर दैनिक संघ कार्य का महत्व व्यक्तिगत सम्बंधों द्वारा संघ कार्य का प्रसार तथा पुष्टि, नए स्वयंसेवकों की खोज, उनका क्रमिक विकास।
ध्येय – चिंतन तथा मनन।