शाखा का प्रारंभ मुख्य शिक्षक द्वारा “स्वस्थान” का संकेत देने वाली सीटी (-०-०) बजाते ही सब स्वयंसेवक आपस की बातचीत बंद कर संपत् स्थान के पीछे की ओर, ध्वजस्थानाभिमुख आरम् में खड़े रहेंगे। पश्चात् मुख्यशिक्षक निम्न पद्धति से आज्ञाएँ देकर शाखा का प्रारंभ करेगा। संपत् होने तक मुख्यशिक्षक ने संपत्रेखा के निकट, मध्य में खड़े रहकर आज्ञाएँ देनी चाहिए।
१. संघ दक्ष
२. आरम्
३. अग्रेसर
‘अग्रेसर’ की आज्ञा होते ही सभी अग्रेसर दक्ष कर प्रचलन करते
नियोजित स्थान पर (संपत् रेखापर) निश्चित क्रमानुसार (अभ्यागत, तरुण, बाल एवं शिशु) आकर दक्ष में खड़े रहेंगे ।
अग्रेसरों को खड़े करने की पद्धति : संपत् रचना के सम्मुख मध्य में ध्वज आवे ओर क्रमशः तरुण, बाल, शिशु इस प्रकार दो-दो कदम का अंतर देकर अग्रेसरों को खड़ा इस बात को ध्यान में रख कर अधिकारी स्थान की ओर से पहले अभ्यागत, उनकी बायीं करना कदम, चाहिए।
(उपरोक्त कार्य सफलता से तथा अचूक करने के लिए ऐसा भी कर सकते हैं-निर्धारित अग्रेसरों की संख्या से एक कदम कम अन्तर (जैसे चार अग्रेसर हैं तो तीन पाँच हैं तो चार) संपत् रेखा के मध्य से अधिकारी स्थान की दिशा में मुख्यशिक्षक ने जाकर क्रम का पहला अग्रेसर (अभ्यागत) खड़ा करना, पश्चात् दो-दो कदम अन्तर पर
• शेष अग्रेसरों को क्रमानुसार खड़े करते हुए मुख्यशिक्षक स्थान की दिशा में बढ़ना ।)
४. अग्रेसर सम्यक् : पहले अग्रेसर (अभ्यागत) के दाहिनी ओर तीन कदम जाकर
● मुख्यशिक्षक अग्रेसरों का सम्यक् ठीक कराएगा। दक्ष
५. अग्रेसर आरम् ६. संघ संपत् : आज्ञा होते ही अग्रेसरों सहित सभी स्वयंसेवक करेंगे।
। पश्चात् स्वयंसेवक प्रचलन करते हुए अपने-अपने अग्रेसर के पीछे गणशः हस्तांतर लेकर खड़े रहेंगे और अग्रेसर के आरम् करने पर क्रमशः आरम् करेंगे। गण के अन्त में गणशिक्षक रहेगा ।
मुख्यशिक्षक तथा उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी क्रमशः वामतम (शिशुगण) तथा दक्षिणतम (अभ्यागत) प्रतति के बाजू में तीन कदम अन्तर पर तथा ध्वजकेन्द्र और संपत्रेखा के मध्य में एक दूसरे की ओर मुँह कर खड़े रहेंगे। दैनिक शाखा में अधिकारी स्थान पर एक ही सर्वोच्च अधिकारी खड़े रहना अपेक्षित है। किन्तु शाखा में प.पू. सरसंघचालक तथा मा.सरकार्यवाह दोनों उपस्थित हैं तो उस स्थान पर दोनों खड़े रहेंगे।
ध्वजारोहण करने वाला स्वयंसेवक अपने बाएं हाथ में तह किया हुआ ध्वज लेकर मुख्यशिक्षक के पास उनकी दाहिनी ओर खड़ा रहेगा। उसके पास उस समय दण्ड नहीं रहेगा।
७. संघ दक्ष : ८. संघ सम्यक् : सभी अग्रेसर अर्धवृत् कर अपने-अपने गण का सम्यक देखेंगे। सम्यक देखने के लिए यथावश्यक सूचनाएँ दे सकते हैं, किन्तु हाथ हिलाना नहीं चाहिए। सब स्वयंसेवकों के दाहिने कंधे या कान का सम्यक देखना चाहिए।
९. अग्रेसर अर्धवृत् : १०. संघ आरम् : स्वयंसेवकों को ध्वजारोपण हेतु प्रस्तुत करने के लिये ‘दक्ष’ देने के पूर्व सबको आरम् करवाना चाहिए। इसके पूर्व की आज्ञा केवल अग्रेसरों से संबंधित होने के कारण ‘आरम्’ न कहकर ‘संघ आरम्’ कहना चाहिए ।
११. संघ दक्ष: पश्चात ध्वजारोपण करने वाला स्वयंसेवक लघुत्तम मार्ग से बांया हाथ (जिसमें तह किया हुआ ध्वज है) न हिलाते हुए ध्वज केन्द्र के सम्मुख पर्याप्त निकट जाकर स्तभ् करेगा। पश्चात् ध्वजदंड उठाकर उसे अपनी बांयी बगल के आधार से तिरछा
स्थिर रखकर, दोनों हाथों का उपयोग करते हुए उस पर ध्वज चढ़ावेगा। ध्वजदंड दोनों हाथों से पकड़कर उसका निम्न छोर ध्वज स्थान की बैठक में फंसावेगा । पश्चात् ध्वजमंडल के बाहर आकर (दैनिक शाखा के लिए एक कदम) ध्वजप्रणाम कर एक कदम पीछे जावेगा और अभ्यागत अग्रेसर की दिशा में आवश्यक उतना वर्तन कर प्रचलन करते हुए लघुत्तम मार्ग से उसके (अभ्यागत) दाहिनी ओर दो कदम अन्तर पर पहुँचकर स्तम्। तथा अर्धवृत् कर खड़ा होगा ।
१२. ध्वज प्रणाम १-२-३ : एक, दो, तीन ये आज्ञाएँ है, अंकताल नहीं, इसलिए हरेक क्रिया आज्ञा के पश्चात् होनी चाहिए
१३. संख्या ः प्रतति में खड़ा हुआ अंत का स्वयंसेवक (गणशिक्षक) दाहिनी ओर एक कदम हटकर (दाहिना पैर ६० सें.मी. दाहिनी ओर लेकर बांया पैर मिलाना) प्रचलन करते हुए व संख्या गिनते हुए (किसी को बिना छुए) अग्रेसर के बाजू में स्तभ् (दाहिने पैर से) करेगा व सामने देखकर अग्रेसर को सुनाई दे इतनी आवाज में संख्या (स्वयं की भी) बताकर खड़ा रहेगा ।
१४. आरम् : आज्ञा होते ही (१) उपरोक्त स्वयंसेवक (गणशिक्षक) अर्धवृत् कर प्रचलन करते हुए अपने स्थान तक जाकर स्तभ् करेगा, पश्चात् अर्धवृत् कर एक कदम बांयी ओर हटकर अपने स्थान पर सम्यक् देखकर आरम् करेगा।
(२) संख्या गणक (ध्वजारोपण कर आया हुआ) एक कदम आगे आकर वामवृत् कर प्रत्येक अग्रेसर के सम्मुख जाकर स्तभ् करेगा (उस समय अग्रेसर दक्ष करेगा) तथा उससे संख्या प्राप्त कर आगे बढ़ेगा (उसके आगे बढ़ने के बाद अग्रेसर आरम् करेगा) इस प्रकार सभी अग्रेसरों से क्रमशः संख्या प्राप्त कर, अंत में अंतिम अग्रेसर से एक कदम आगे जाकर दक्षिण वृत् करेगा । प्राप्त संख्या का योग कर (कुल अभ्यागत, कुल तरुण, कुल बाल, कुल शिशु इस प्रकार) तथा उसमें स्वयं की सख्यां (वह जिस गण में है उसमें) जोड़कर मुख्यशिक्षक के सम्मुख जाकर उसे बतावेगा। पश्चात् अपने बांयी ओर हटकर (बांया पैर ६० सेंमी बांयी ओर, दाहिना मिलाना) दो कदम आगे जाकर, अर्धवृत् कर मुख्यशिक्षक के दाहिनी ओर आरम् कर खड़ा करेगा। (३) अन्य सभी स्वयंसेवक आरम् करेंगे।
१५. संघ दक्ष : शाखा में उपस्थित सर्वोच्च अधिकारी यदि दक्ष द्वारा सम्मानित | किए जाने वाली श्रेणी (प. पू. सरसंघचालक / मा. सरकार्यवाह / मा. संघचालक शाखा स संबंधित तथा क्रमानुसार) के हैं तो इस आज्ञा के पश्चात मुख्यशिक्षक दौड़कर मा. अधिकारी के सम्मुख दो कदम दूरी पर जाकर स्तभ करेगा और संख्यागणक द्वारा प्राप्त संख्या मं स्वयं की और अधिकारी की तथा संपत् रचना के बाहर ( किसी व्यवस्था के कारण) के स्वयं सेवकों की संख्या उचित श्रेणी में जोड़कर मा. अधिकारी को अभ्यागत-तरुण-बाल-शिशु इस क्रम में बतावेगा। मा. अधिकारी की अनुमति पाकर एक पद प्रतिसर (किसी विशेष अवसर पर अधिकारी स्वयंसेवकाभिमुख खड़े हैं तो भी) करेगा पश्चात् स्वयंसेवकों की दिशा में घूमकर (पूर्ण रचना दृष्टिक्षेप में आवे इतना आवश्यक ‘वर्तन कर) ‘आरम्’ की आज्ञा देगा और अपने स्थान की दिशा में घूमकर दोड़ते हुए अपने स्थान पर जाकर स्तम् तथा अर्धवृत् करेगा।
उपस्थित अधिकारी कार्यवाह श्रेणी (सहसरसरकार्यवाह से शाखा कार्यवाह तक) के है तो उन्हें संख्या बताने के लिये जाने के पूर्व-
१६. आरम् : आज्ञा देकर उपरोक्त पद्धति से अधिकारी को संख्या बताने के पश्चात् एक पद प्रतिसर कर मुख्यशिक्षक अर्धवृत् करेगा और दोड़ते हुए अपने स्थान पर जाकर
स्तभ् तथा अर्धवृत् करेगा ।
१७. संघ दक्ष १८. स्वस्थान: आज्ञा के पश्चात् स्वयंसेवक अपने-अपने गणस्थान पर जाकर गणशिक्षक की आज्ञानुसार कार्य करेंगे। जहाँ स्वयंसेवक गणानुसार खड़े हैं
वहाँ आज्ञा के पश्चात् गणशिक्षक ही अपने गणों को ले जाएंगे।