ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ है, जो वैदिक साहित्य का आधार माना जाता है। यह चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) में से पहला और सबसे महत्वपूर्ण है।
ऋग्वेद का रचनाकाल विद्वानों द्वारा सामान्यतः – 1500 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है, हालांकि कुछ परंपराएं इसे और भी प्राचीन मानती हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और प्राचीन भारतीय जीवन की झलक मिलती है।
सामान्य परिचय: संरचना: ऋग्वेद में 10 मंडल (खंड) हैं, जिनमें कुल 1028 सूक्त शामिल हैं। इन सूक्तों में 10600 से अधिक मंत्र हैं, जो विभिन्न छंदों (जैसे गायत्री, त्रिष्टुप, अनुष्टुप) में रचे गए हैं। प्रत्येक सूक्त किसी न किसी देवता को समर्पित है, जैसे अग्नि, इंद्र, वरुण, सोम आदि।
प्रमुख विषय:- यह ग्रंथ मुख्य रूप से प्रकृति के देवताओं (अग्नि, वायु, सूर्य, इंद्र आदि) की स्तुति करता है। इसमें यज्ञ, कर्मकांड, और ब्रह्मांड के रहस्यों पर विचार व्यक्त किए गए हैं। दार्शनिक मंत्र भी हैं, जैसे नासदीय सूक्त (10.129) जो सृष्टि के उत्पत्ति के बारे में गहन प्रश्न उठाता है।
लेखक: – ऋग्वेद को विभिन्न ऋषियों (जैसे विश्वामित्र, वशिष्ठ, भारद्वाज आदि) द्वारा दैवीय प्रेरणा से रचित माना जाता है। इसे “श्रुति” कहा जाता है, यानी जो सुना गया और पीढ़ियों तक मौखिक रूप से संरक्षित रहा।
सांस्कृतिक महत्व: – ऋग्वेद प्राचीन आर्य सभ्यता का दर्पण है, जिसमें उनकी भाषा, सामाजिक व्यवस्था, और धार्मिक विश्वासों का वर्णन है। यह भारतीय दर्शन, योग और अध्यात्म के मूल स्रोतों में से एक है।
भाषा और शैली: – इसकी भाषा वैदिक संस्कृत है, जो शास्त्रीय संस्कृत से अधिक पुरातन और जटिल है। मंत्रों में काव्यात्मकता, प्रतीकात्मकता और गहरे अर्थ छिपे हैं। ऋग्वेद केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव इतिहास का एक अनमोल दस्तावेज है, जो प्राचीन ज्ञान और विज्ञान को भी दर्शाता है।
जय सनातन धर्म ! जय जगत