प्रत्येक शाखा समान पद्धति से संचालित हो । शाखा का प्रारंभ, ६० मिनट के कार्यक्रमों का संचालन, शाखा का समापन एक ही पद्धति से हो तथा शाखा के सम्बन्ध में अन्य आवश्यक बातों के लिए कुछ नियम बनाए गये हैं। वे सब ‘आचार विभाग’ के अंतर्गत दिए गए हैं। उसका प्रत्येक शाखा में आग्रह से पालन होना चाहिए शाखा प्रारंभ करने के पूर्व कुछ बातों को समझ लेना आवश्यक है।
१. संघस्थान : जिस स्थान पर स्वयंसेवक एकत्र आकर संस्कार ग्रहण करते हैं, वह शाखा का मैदान साफ-सुथरा, मन को प्रसन्न करने वाला होना चाहिए। संघस्थान पर जहाँ ध्वज का स्थान है, वह सादे ही ढंग से क्यों न हो स्वच्छ और सुशोभित रखना चाहिए। जिन शाखाओं में ध्वज नहीं लगाया जाता वहाँ के स्वयंसेवकों को ध्वजप्रणाम आदि बातों का संस्कार एवं अभ्यास कराने के लिये नियोजित स्थान पर ध्वज है ऐसा मानकर ध्वजप्रणाम आदि का व्यवहार हो । वह स्थान, ध्वज मंडल या कोई चिन्ह बनाकर सीमांकित और स्वच्छ करना चाहिए।
२. ध्वज मंडल : दैनिक शाखा में ध्वजस्तंभ सामान्यतः २.५ मीटर ऊँचा हो तथा बैठक (ध्वज स्टेन्ड) को केन्द्र मानकर ९० से.मी. त्रिज्या का मंडल अथवा मंडलांश बनाना चाहिए।
३. संपत् रेखा : जिस रेखा पर अग्रेसर खड़े किए जाते हैं, उसे संपत् रेखा कहा गया है। यह रेखा ध्वजकेन्द्र से ध्वजस्तंभ की ऊँचाई से कम अन्तर पर न हो।
यह सभी शाखा के आचार विभाग के अन्तर्गत आते हैं!