राष्ट्रीय अपने देश, उसकी परंपराओं के प्रति, उसके ऐतिहासिक महापुरूषों के प्रति, उसकी सुरक्षा और समृद्धि के प्रति, जिनकी अव्यभिचारी एवं एकान्तिक निष्ठा होवे जन राष्ट्रीय कहलाते हैं। (यह अलग चर्चा का विषय भी है) व्यवहारिक रूप में राष्ट्रीय, भारतीय तथा हिन्दू शब्द पर्यायवाची हैं। (यह भी चर्चा का विषय है)
स्वयंसेवक
(i) स्वयंस्फूर्ति से राष्ट्र, समाज, देश, धर्म तथा संस्कृति की सेवा करने वाले, उसकी रक्षा करने वाले और उनकी अभिवृद्धि के लिये प्रामाणिकता तथा निस्वार्थ बुद्धि से कार्य करने वाले को संघ की दृष्टि से “स्वयंसेवक” कहते हैं। जबकि सामान्य लोक-व्यवहार में ‘वालिंटियर’ केवल बालचरों या नेताओं के सेवकों जैसे कार्य करता है। आश्रमों में स्वयंसेवक का अर्थ अपना कार्य अपने आप करने वाला।
(ii) संघ द्वारा ‘स्वयंसेवक’ शब्द के अर्थ को नया ही रूप मिला है। जो मातृभूमि भारत या हिंदू राष्ट्र की सेवा, बिना किसी प्रतिदान या पुरस्कार की इच्छा के अनुशासनपूर्वक निर्धारित पद्धति से निरंतर योजना-बद्ध रूप में करे, उसे स्वयंसेवक कहते हैं। स्वयंसेवकत्व की यह कल्पना संघ की अनुपम देन है।
(iii) एक बार स्वयंसेवक – सदा स्वयंसेवक (Once a swayamsevak always a Swayamsevak)
कुछ लोग शिथिल स्वयंसेवक, कुछ लोग नियमित परन्तु कर्तव्य से “उदासीन” स्वयंसेवक, एक वर्ग सक्रिय स्वयंसेवक, विशाल हिंदू (भारतीय) समाज “भावी” स्वयंसेवक। एक दिन सब स्वयंसेवक बनेंगे।
संघ
संघ संगठन को कहते हैं। भीड़, मेले, एकत्रीकरण, सम्मेलन, सभा, गोष्ठी या मात्र संस्था को संघ नहीं कह सकते। संगठन मित्रों का (एकात्म भाव धारी समाज के घटकों का) एक ऐसा समूह होता है जो एक ध्येय से प्रेरित मानो परिणय-सूत्र में बंधे हुए, एक ही दृष्टि, एक ही दृष्टिकोण से विचार करते हैं, उसे निश्छल रूप से एक दूसरे पर प्रकट करते।
हैं, एक ही पद्धति, एक ही चाल, एक ही ढंग (रीति) के साथ मिलजुलकर पूर्ण शक्ति से कार्य करते हैं। An organisation is a group of friends who can think aloud wedded together to a common ideal and goal तुलना रस्सी, मधुमक्खियों का छत्ता, वृक्ष, मानव शरीर।
संघ स्वयंसेवकों के लिये है, स्वयंसेवक संघ के लिये। दोनों राष्ट्रीय-समाज के लिये, उससे अभिन्न एकात्म। स्वयंसेवक आत्म-विस्तार करते-करते संघ बन जाता है, संघ आत्मविस्तार करते-करते संपूर्ण समाज व्यापी होना चाहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – यह भेदभाव रहित सम्पूर्ण हिंदू समाज का संगठित स्वरूप है—’दल’ नहीं ‘संस्था’ नहीं, सत्ता आदि के क्षुद्र लक्ष्यों को सामने रखकर शक्तिशाली गिरोह निर्माण का प्रयत्न नहीं। (जैसे फासिस्ट या नाजी संगठन थे) संघ समाज का संगठन है, समाज में संगठन नहीं।
आर. एस. एस. – (Ever) Ready for Selfless Service समाज-सेवा में तत्पर नित्य-सिद्ध चिर-विश्वसनीय रचनात्मक शक्ति—(Ever ready Reliable Constructive Force)।