कूर्म पुराण : हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ
हिन्दू धर्म के अठारह ( 18 ) महापुराणों में कूर्म पुराण का विशिष्ट स्थान है ! क्या आपने कभी सोचा है कि एक कछुए के रूप में भगवान का अवतार लेना कितना गहरा संदेश देता है ? यह पुराण न केवल धार्मिक कहानियों का भंडार है बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है ! धैर्य, स्थिरता और संतुलन ये सभी गुण कूर्म अवतार में समाहित हैं !
कूर्म पुराण की शुरुआत की कहानी ही अनूठी है ! कहते हैं कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके राजा इन्द्रद्युम्न को इस ज्ञान का खजाना दिया था ! फिर समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और ऋषियों को यही कथा सुनाई ! और अंत में नैमिषारण्य के महासत्र में अट्ठासी हजार ( 88000 ) ऋषियों को यह अमूल्य ज्ञान मिला !
सोचिए, कितनी बार यह ज्ञान स्वयं भगवान के मुख से निकला ! जब कोई बात इतनी बार दोहराई जाए तो समझ जाना चाहिए कि उसमें कुछ खास बात है ! महर्षि वेदव्यास ने इस पूरे ज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर हमारे लिए सुरक्षित रखा !
यह पुराण दो भागों में बंटा है पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध ! मूल रूप से इसमें सत्रह हजार ( 17,000 ) श्लोक थे लेकिन आज हमारे पास लगभग छह हजार ( 6,000 ) श्लोक ही बचे हैं ! समय का प्रवाह कई खजाने को बहा ले जाता है यह भी उसी का उदाहरण है !
पूर्वार्द्ध में बावन ( 52 ) अध्याय हैं, उत्तरार्द्ध में चवालीस ( 44 ) ! पहले चार संहिताएं थीं, अब केवल ब्राह्मी संहिता ही मिलती है ! लेकिन जो बचा है वही इतना समृद्ध है कि पूरी जिंदगी पढ़ते रहें तो भी नई बातें मिलती रहेंगी !
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के ये चार स्तंभ इस पुराण में बड़ी खूबसूरती से समझाए गए हैं ! यह कोई सूखा शास्त्र नहीं है बल्कि जीवन जीने का पूरा गाइड है !
समुद्र मंथन की कहानी पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे यह केवल देवताओं और दानवों की कथा नहीं बल्कि हमारे भीतर के संघर्ष का भी चित्रण हो ! जब अमृत पाने की इच्छा जगी तो सबने मिलकर समुद्र मंथन का फैसला किया !
लेकिन जैसे ही काम शुरू हुआ, समस्या आई ! मंदराचल पर्वत डूबने लगा ! कितनी बार हमारे साथ भी ऐसा होता है ! कोई बड़ा काम शुरू करते हैं और तुरंत मुश्किलें आने लगती हैं !
तब भगवान विष्णु ने कूर्म रूप धारण किया ! एक कछुआ ! धीमा, स्थिर, धैर्यवान ! उन्होंने मंदराचल को अपनी पीठ पर उठा लिया ! यही तो जिंदगी का फलसफा है जब सब कुछ अस्थिर हो जाए तो हमें अपने भीतर वह स्थिरता खोजनी होगी !
और फिर क्या निकला समुद्र से ! चौदह ( 14 )अनमोल रत्न कुछ अच्छे, कुछ बुरे ! जिंदगी भी तो ऐसी ही है ! खुशी और गम, सफलता और असफलता, सब कुछ मिला जुला आता है ! लेकिन जो धैर्य रखता है उसे अंत में अमृत मिल ही जाता है !
कूर्म पुराण की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह किसी एक देवता की महिमा नहीं गाता ! विष्णु, शिव, शक्ति सभी को एक ही सिक्के के अलग पहलू के रूप में दिखाया गया है ! आज के जमाने में जब धर्म के नाम पर बंटवारे होते हैं तो यह संदेश कितना महत्वपूर्ण है !
पुराण कहता है कि पार्वती के आठ हजार ( 8000 ) नाम हैं ! सोचिए, एक ही शक्ति के इतने रूप ! यह हमें सिखाता है कि सच्चाई एक है लेकिन उसे देखने के हजारों तरीके हैं !
वर्णाश्रम धर्म के बारे में भी इसमें विस्तार से लिखा है ! लेकिन यहां जाति पांति की कड़ाई नहीं बल्कि हर व्यक्ति के कर्तव्य की बात है ! ब्राह्मचर्य हो या गृहस्थ, वानप्रस्थ हो या संन्यास हर आश्रम की अपनी गरिमा है अपना योगदान है !
भगवद्गीता के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन ईश्वर गीता ? यह कूर्म पुराण का सबसे कीमती हिस्सा है ! यहां भगवान शिव खुद उपदेश देते हैं ! कितना दिलचस्प दृश्य है विष्णु और शिव का आलिंगन, और फिर जीवन के गहरे रहस्यों पर चर्चा !
ईश्वर गीता में शिव बताते हैं कि आत्मा क्या है, ब्रह्म क्या है, माया क्या है ! लेकिन यह कोई कठिन दर्शन नहीं है ! यह तो जीवन जीने का सरल सूत्र है अपने भीतर उस सत्य को पहचानना जो सभी में एक है !
सबसे अच्छी बात यह है कि ईश्वर गीता कहती है कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति का हो भक्ति के रास्ते मुक्ति पा सकता है ! कितना सुंदर संदेश है यह !
काशी की महिमा कौन नहीं जानता ? लेकिन कूर्म पुराण में काशी का जो वर्णन है वह तो एक जीवंत गाइडबुक की तरह है ! हर गली, हर घाट, हर मंदिर की कहानी ! ऐसा लगता है जैसे कोई प्रेमी अपने प्रिय शहर के बारे में बता रहा हो !
प्रयाग का माहात्म्य भी कम दिलचस्प नहीं है ! गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम केवल नदियों का मिलना नहीं बल्कि तीन अलग शक्तियों का एक होना !
व्यास गीता में महर्षि व्यास कहते हैं कि कर्मकांड भी ज्ञान का रास्ता है ! पूजा पाठ, संस्कार ये सब केवल रीति रिवाज नहीं हैं बल्कि मन को शुद्ध करने के साधन हैं !
कूर्म पुराण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह किसी एक मत की बात नहीं करता ! वैष्णव हैं आप ? स्वागत है ! शैव हैं ? आइए ! शाक्त हैं ? बहुत अच्छे ! यह पुराण सभी को अपने आंचल में समेट लेता है !
योग शास्त्र, ज्योतिष, युगधर्म कितने विषयों का समावेश है इसमें ! अट्ठाइस ( 28 ) व्यासों की सूची भी है, विभिन्न मन्वंतरों का ब्यौरा भी ! यह तो पूरा विश्वकोश है !
सबसे महत्वपूर्ण बात नैतिक शिक्षाएं ! सत्य, करुणा, अहिंसा, आत्मसंयम ! क्या ये आज के जमाने में कम जरूरी हैं ? बल्कि आज तो इनकी और भी ज्यादा जरूरत है !
आज जब हम तनाव में घिरे रहते हैं तो कूर्म अवतार का संदेश कितना प्रासंगिक लगता है ! धीमे चलो, धैर्य रखो, स्थिर रहो ! दुनिया की रफ्तार बढ़ती जा रही है लेकिन कछुआ अपनी ही गति से चलता है और अपनी मंजिल पहुंच जाता है !
समुद्र मंथन में जो विष निकला था वह भी तो आज के प्रदूषण, नकारात्मकता और तनाव का प्रतीक है ! और अमृत ? वह है प्रेम, शांति और खुशी ! दोनों एक ही जगह से निकलते हैं हमारे अपने कर्मों से !
चार पुरुषार्थों का संतुलन आज भी उतना ही जरूरी है ! केवल धन कमाना काफी नहीं, केवल आध्यात्म भी अधूरा है ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी का संतुलन जरूरी है !
जब मैं कूर्म पुराण के बारे में सोचता हूं तो मन में एक सवाल उठता है क्या हम सब अपने जीवन में किसी न किसी समुद्र मंथन से गुजर रहे हैं ? कभी नौकरी की तलाश में, कभी रिश्तों की उलझनों में, कभी सफलता की चाह में !
और जब सब कुछ हिलने लगता है, डूबने लगता है, तो क्या हमारे पास भी कोई कूर्म अवतार है ? हां, है ! वह है हमारा धैर्य, हमारी आंतरिक शक्ति, हमारा विश्वास !
कूर्म पुराण हमें यही सिखाता है जिंदगी एक समुद्र मंथन है ! कभी अच्छा निकलेगा, कभी बुरा ! लेकिन जो व्यक्ति धैर्य रखकर स्थिर मन से अपना काम करता रहता है उसे अंत में अमृत जरूर मिलता है !
तो क्या आप तैयार हैं अपने भीतर के कूर्म अवतार को जगाने के लिए ? क्या आप भी बनना चाहते हैं वह स्थिर शक्ति जो दूसरों के सपनों को सहारा दे सके ?
कूर्म पुराण सिर्फ एक किताब नहीं है यह जीवन जीने का तरीका है !