गरुड़ पुराण : जीवन और मृत्यु की गहरी झलक
गरुड़ पुराण… नाम सुनते ही एक हल्की सी बेचैनी और थोड़ी जिज्ञासा होती है ! कभी सोचा है ? यह सिर्फ एक पुराना धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सच्चाइयों का पिटारा भी है ! मैं कहूँ तो ऐसा लगता है जैसे यह हमें बार बार हमारे कर्मों की याद दिलाता है ! कभी कभी तो पढ़ते पढ़ते मन में सवाल उठता है ” क्या सच में इस्की बातें उतनी गहरी हैं जितनी लगती हैं ? ” और वहीं बीच में रुक भी जाता हूँ कि ” शायद ये सब हमारे डर और उम्मीदों का ही मिश्रण हो ! “
गरुड़ पुराण का संवाद भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच होता है ! बातचीत में कहीं गूढ़ता है और कहीं बिलकुल साधारणता ! बड़े बड़े सवाल छोटे छोटे जवाब… जैसे दोस्तों के बीच का आम संवाद ! पर सोचिए… भगवान के रूप में जो बातें सामने आती हैं वे बस आध्यात्मिक तर्क या किस्से नहीं बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की अंतहीन यात्राओं का सच हैं !
अक्सर लगता है कि गरुड़ पुराण सिर्फ मौत के बाद की बातें बताता है ! लेकिन जरा गहराई से देखें तो पता चलता है कि इसमें जीवन जीने के कई मंत्र छुपे हैं ! जिनसे पता चलता है कि इंसान को कैसे अपने कर्मों का लेखा जोखा रखना होता है ! अब सच कहूँ तो मुझे कभी कभी डर लगता है… खासकर जब नरकों की बात आती है उन जगहों के दंडों का वर्णन सुनकर लगता है जैसे कोई कहीं गुप्त कैमरे से हमारी हर गलती देख रहा हो !
वैसे यह डर आतंरिक रूप से ठीक भी है ! क्योंकि यही डर हमें सुधारने की दिशा देता है ! थोड़ा डर होता तो अच्छा है क्योंकि हम अकसर भूल जाते हैं कि हमारे कर्मों का एक नतीजा होता है ! पर फिर बीच बीच में पढ़ते हैं ऐसा भी लिखा है कि भक्ति और दया से बड़ा कुछ नहीं ! सोचता हूँ, ” वाह ज़िंदगी का ये पाठ तो बड़ा उपहार है ! “
मुझे याद है जीवन के एक ऐसे दौर में जब कई ज़िम्मेदारियाँ और उलझनें थीं तब गरुड़ पुराण में एक पंक्ति ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर किया “ जैसा करोगे, वैसा भरोगे ! ” यह लाइन सिर्फ़ रोचक नहीं एक चेतावनी और एक रास्ता भी था ! उस वक्त कुछ समझ में आया कि ज़िंदगी कितनी नाजुक है और किस तरह हर फैसला मायने रखता है !
गरुड़ पुराण हर बार एक नया रंग दिखाता है ! कहीं तो जीवन की सादगी से भरा होता है कहता है कि सच बोलो, दूसरों का सम्मान करो, और संयम रखो ! और वहीं कहीं कहीं तो फिर से मौत, यमलोक, नरकों को लेकर इतनी गंभीरता छा जाती है कि मन थम सा जाता है !
कभी अचानक कोई विचार बीच में अधूरा छोड़ देता है जैसे, ” यमराज के न्याय का सच कुछ ऐसा है कि…” और फिर आगे का हिस्सा छोड़ देता है मानो पढ़ने वाले को अपनी समझ से जोड़ने देता है ! याद आता है कि जीवन भी लगभग ऐसा ही है कभी कभी निर्णय अधूरा, कभी डर अधूरा, पर फिर भी बढ़ने वाले को रोक नहीं पाता !
गरुड़ पुराण में न केवल मृत्यु और उसके बाद की यात्रा नही है बल्कि जीवन जीने के तरीके भी बताता है ! भक्ति, तपस्या, दान, श्राद्ध, नीति और आचरण की बातें जो हमें सरल लेकिन गहरी सड़क दिखाती हैं ! कभी कभी लगता है कि ये बातें जैसे दिन प्रतिदिन की छोटी छोटी वस्तुओं से जुड़ी हैं जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं !
और हाँ मानसिक शांति के लिए गरुड़ पुराण का महत्व बहुत बड़ा है ! कई बार जीवन की भागदौड़ में कोई खो जाता है तब गरुड़ पुराण की कुछ पंक्तियाँ जैसे चुपके से दिल में उतर जाती हैं ” सहनशील बनो, धैर्य रखो, अपना काम ईमानदारी से करो ! ” ये बातें कहीं दिमाग को फिर से सच की ओर आकर्षित करती हैं !
मन में प्रश्न बार बार घूमते रहते हैं ” क्या आत्मा सच में प्रेतयोनि में तेरह ( 13 ) दिन रहती है ? ” या ” क्या यमलोक वास्तव में कोई जगह है ? ” इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिलता, लेकिन पढ़ते पढ़ते यह एहसास होता है कि शायद गरुड़ पुराण का मकसद हमें डराना नहीं बल्कि जीवन की गहराईयों से परिचित कराना है !
गरुड़ पुराण की बात करें तो यह कोई पक्का तार्किक ग्रंथ नहीं है ! बल्कि यह इंसान की अस्थिर सोच, भय, विश्वास और अनुभव का मिश्रण है ! इसलिए इसमें कई बार विरोधाभास और अधूरी बातें भी मिलती हैं ! और यही इसे और भी वास्तविक बनाती हैं !
जीवन की आपाधापी में जब भी इंसान थक जाता है तो गरुड़ पुराण की कुछ पंक्तियाँ उसे फिर से रास्ता दिखा देती हैं ! यह ग्रंथ पढ़ने वाले के लिए एक दोस्त की तरह होता है जो कभी सवाल करता है कभी उत्तर देता है कभी चुप भी हो जाता है !
दार्शनिक अनुभवों के साथ साथ यह पुराण दैनिक जीवन की जद्दोजहद की कहानियाँ भी कहता है, कैसे रिश्ते निभाएं, कैसे कर्म करें, कैसे अपने आप को सुधारें ! अगर आप कभी ऐसा महसूस करें कि ज़िंदगी आपके कंट्रोल से बाहर है, तो गरुड़ पुराण की शिक्षाएँ एक सहारा साबित होती हैं !
तो फिर यह समझना आसान होता है कि गरुड़ पुराण सिर्फ संस्कार या अंतिम संस्कार का हिस्सा नहीं है बल्कि यह एक जीवन दर्शन है ! एक ऐसी किताब जो बार बार पढ़ी जाए तो मन के अनगिनत दरवाज़े खोलती है !
और हाँ यह पूरी किताब पढ़ना आसान नहीं होता ! कई बार पढ़ते हुए रुकना पड़ता है, सोचने लगते हैं की ” यह सच में कैसे होता होगा ? ” या ” क्या मैं भी अपने कर्मों के हिसाब से आगे बढ़ूंगा ? ” यही सवाल गरुड़ पुराण का सबसे बड़ा तोहफा है क्योंकि पूछना ही इंसान को बदलता है !
तो दोस्तों, इस पुराण से जो सबसे ज़रूरी सीख मिलती है वह यही है की हमारे कर्म, हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाते हैं ! गरुड़ पुराण पढ़ना प्रारंभिक तौर पर भारी लग सकता है लेकिन अंदर उतरते ही यह आध्यात्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत दुनिया में नई उम्मीद और दिशा देता है !
तो बस गरुड़ पुराण को कोई पुरानी किताब न समझिए ! इसे समझने की कोशिश करें, रुक रुक कर पढ़ें और सवाल पूछते रहें… और स्वीकार करें कि ज़िंदगी भी उतनी ही पेचीदा और अनिश्चित है जितनी यह अपनी कहानियाँ कहती है !
और अंत में यही कहना चाहूँगा कि गरुड़ पुराण केवल मृत्यु का वर्णन नहीं बल्कि जीवन का भी अद्भुत ग्रंथ है, जो मनुष्य के हर पहलू को छूता है जैसे की डर, मोह, सच्चाई, सेवा, और सबसे ऊपर उम्मीद ! बस ज़िंदगी से जुड़े रहो यही गरुड़ पुराण के शब्दों का सार है !गरुड़ पुराण : जीवन और मृत्यु की गहरी झलक
गरुड़ पुराण… नाम सुनते ही एक हल्की सी बेचैनी और थोड़ी जिज्ञासा होती है ! कभी सोचा है ? यह सिर्फ एक पुराना धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सच्चाइयों का पिटारा भी है ! मैं कहूँ तो ऐसा लगता है जैसे यह हमें बार बार हमारे कर्मों की याद दिलाता है ! कभी कभी तो पढ़ते पढ़ते मन में सवाल उठता है ” क्या सच में इस्की बातें उतनी गहरी हैं जितनी लगती हैं ? ” और वहीं बीच में रुक भी जाता हूँ कि ” शायद ये सब हमारे डर और उम्मीदों का ही मिश्रण हो ! “
गरुड़ पुराण का संवाद भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच होता है ! बातचीत में कहीं गूढ़ता है और कहीं बिलकुल साधारणता ! बड़े बड़े सवाल छोटे छोटे जवाब… जैसे दोस्तों के बीच का आम संवाद ! पर सोचिए… भगवान के रूप में जो बातें सामने आती हैं वे बस आध्यात्मिक तर्क या किस्से नहीं बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की अंतहीन यात्राओं का सच हैं !
अक्सर लगता है कि गरुड़ पुराण सिर्फ मौत के बाद की बातें बताता है ! लेकिन जरा गहराई से देखें तो पता चलता है कि इसमें जीवन जीने के कई मंत्र छुपे हैं ! जिनसे पता चलता है कि इंसान को कैसे अपने कर्मों का लेखा जोखा रखना होता है ! अब सच कहूँ तो मुझे कभी कभी डर लगता है… खासकर जब नरकों की बात आती है उन जगहों के दंडों का वर्णन सुनकर लगता है जैसे कोई कहीं गुप्त कैमरे से हमारी हर गलती देख रहा हो !
वैसे यह डर आतंरिक रूप से ठीक भी है ! क्योंकि यही डर हमें सुधारने की दिशा देता है ! थोड़ा डर होता तो अच्छा है क्योंकि हम अकसर भूल जाते हैं कि हमारे कर्मों का एक नतीजा होता है ! पर फिर बीच बीच में पढ़ते हैं ऐसा भी लिखा है कि भक्ति और दया से बड़ा कुछ नहीं ! सोचता हूँ, ” वाह ज़िंदगी का ये पाठ तो बड़ा उपहार है ! “
मुझे याद है जीवन के एक ऐसे दौर में जब कई ज़िम्मेदारियाँ और उलझनें थीं तब गरुड़ पुराण में एक पंक्ति ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर किया “ जैसा करोगे, वैसा भरोगे ! ” यह लाइन सिर्फ़ रोचक नहीं एक चेतावनी और एक रास्ता भी था ! उस वक्त कुछ समझ में आया कि ज़िंदगी कितनी नाजुक है और किस तरह हर फैसला मायने रखता है !
गरुड़ पुराण हर बार एक नया रंग दिखाता है ! कहीं तो जीवन की सादगी से भरा होता है कहता है कि सच बोलो, दूसरों का सम्मान करो, और संयम रखो ! और वहीं कहीं कहीं तो फिर से मौत, यमलोक, नरकों को लेकर इतनी गंभीरता छा जाती है कि मन थम सा जाता है !
कभी अचानक कोई विचार बीच में अधूरा छोड़ देता है जैसे, ” यमराज के न्याय का सच कुछ ऐसा है कि…” और फिर आगे का हिस्सा छोड़ देता है मानो पढ़ने वाले को अपनी समझ से जोड़ने देता है ! याद आता है कि जीवन भी लगभग ऐसा ही है कभी कभी निर्णय अधूरा, कभी डर अधूरा, पर फिर भी बढ़ने वाले को रोक नहीं पाता !
गरुड़ पुराण में न केवल मृत्यु और उसके बाद की यात्रा नही है बल्कि जीवन जीने के तरीके भी बताता है ! भक्ति, तपस्या, दान, श्राद्ध, नीति और आचरण की बातें जो हमें सरल लेकिन गहरी सड़क दिखाती हैं ! कभी कभी लगता है कि ये बातें जैसे दिन प्रतिदिन की छोटी छोटी वस्तुओं से जुड़ी हैं जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं !
और हाँ मानसिक शांति के लिए गरुड़ पुराण का महत्व बहुत बड़ा है ! कई बार जीवन की भागदौड़ में कोई खो जाता है तब गरुड़ पुराण की कुछ पंक्तियाँ जैसे चुपके से दिल में उतर जाती हैं ” सहनशील बनो, धैर्य रखो, अपना काम ईमानदारी से करो ! ” ये बातें कहीं दिमाग को फिर से सच की ओर आकर्षित करती हैं !
मन में प्रश्न बार बार घूमते रहते हैं ” क्या आत्मा सच में प्रेतयोनि में तेरह ( 13 ) दिन रहती है ? ” या ” क्या यमलोक वास्तव में कोई जगह है ? ” इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिलता, लेकिन पढ़ते पढ़ते यह एहसास होता है कि शायद गरुड़ पुराण का मकसद हमें डराना नहीं बल्कि जीवन की गहराईयों से परिचित कराना है !
गरुड़ पुराण की बात करें तो यह कोई पक्का तार्किक ग्रंथ नहीं है ! बल्कि यह इंसान की अस्थिर सोच, भय, विश्वास और अनुभव का मिश्रण है ! इसलिए इसमें कई बार विरोधाभास और अधूरी बातें भी मिलती हैं ! और यही इसे और भी वास्तविक बनाती हैं !
जीवन की आपाधापी में जब भी इंसान थक जाता है तो गरुड़ पुराण की कुछ पंक्तियाँ उसे फिर से रास्ता दिखा देती हैं ! यह ग्रंथ पढ़ने वाले के लिए एक दोस्त की तरह होता है जो कभी सवाल करता है कभी उत्तर देता है कभी चुप भी हो जाता है !
दार्शनिक अनुभवों के साथ साथ यह पुराण दैनिक जीवन की जद्दोजहद की कहानियाँ भी कहता है, कैसे रिश्ते निभाएं, कैसे कर्म करें, कैसे अपने आप को सुधारें ! अगर आप कभी ऐसा महसूस करें कि ज़िंदगी आपके कंट्रोल से बाहर है, तो गरुड़ पुराण की शिक्षाएँ एक सहारा साबित होती हैं !
तो फिर यह समझना आसान होता है कि गरुड़ पुराण सिर्फ संस्कार या अंतिम संस्कार का हिस्सा नहीं है बल्कि यह एक जीवन दर्शन है ! एक ऐसी किताब जो बार बार पढ़ी जाए तो मन के अनगिनत दरवाज़े खोलती है !
और हाँ यह पूरी किताब पढ़ना आसान नहीं होता ! कई बार पढ़ते हुए रुकना पड़ता है, सोचने लगते हैं की ” यह सच में कैसे होता होगा ? ” या ” क्या मैं भी अपने कर्मों के हिसाब से आगे बढ़ूंगा ? ” यही सवाल गरुड़ पुराण का सबसे बड़ा तोहफा है क्योंकि पूछना ही इंसान को बदलता है !
तो दोस्तों, इस पुराण से जो सबसे ज़रूरी सीख मिलती है वह यही है की हमारे कर्म, हमारी सोच और हमारा व्यवहार हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाते हैं ! गरुड़ पुराण पढ़ना प्रारंभिक तौर पर भारी लग सकता है लेकिन अंदर उतरते ही यह आध्यात्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत दुनिया में नई उम्मीद और दिशा देता है !
तो बस गरुड़ पुराण को कोई पुरानी किताब न समझिए ! इसे समझने की कोशिश करें, रुक रुक कर पढ़ें और सवाल पूछते रहें… और स्वीकार करें कि ज़िंदगी भी उतनी ही पेचीदा और अनिश्चित है जितनी यह अपनी कहानियाँ कहती है !
और अंत में यही कहना चाहूँगा कि गरुड़ पुराण केवल मृत्यु का वर्णन नहीं बल्कि जीवन का भी अद्भुत ग्रंथ है, जो मनुष्य के हर पहलू को छूता है जैसे की डर, मोह, सच्चाई, सेवा, और सबसे ऊपर उम्मीद ! बस ज़िंदगी से जुड़े रहो यही गरुड़ पुराण के शब्दों का सार है !