ब्रह्मवैवर्त पुराण : आध्यात्मिक प्रेम, ज्ञान और वैष्णव परंपरा का अप्रतिम ग्रंथ
भारतीय संस्कृति के विशाल ग्रंथों की परंपरा में ” ब्रह्मवैवर्त पुराण ” का स्थान बेहद खास है ! इसका नाम लेते ही राधा कृष्ण के दिव्य अनुराग, अद्भुत लीलाओं और स्त्री शक्ति के आदर का भाव मन में उद्भासित हो उठता है ! जब मैंने पहली बार इस महापुराण की कथाएँ पढ़ीं, तो राधा कृष्ण के प्रेम की व्याख्या ने मेरे भीतर एक अजीब सी शांति भर दी ! इस ग्रंथ की कहानियाँ जहाँ एक ओर अलौकिक रोमान और अध्यात्म की गहराइयों को छूती हैं वहीं दूसरी ओर इनमें सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोण भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है !
‘ ब्रह्मवैवर्त ‘ शब्द का विश्लेषण करें तो इसका शाब्दिक अर्थ है ‘ ब्रह्म का रूपांतर या विस्तार ‘ ! यह पुराण कई बार ‘ रचनात्मक शिव शक्ति ‘ के चिन्तन से जुड़े हुए वैष्णव कल्पनाओं की मौलिक प्रस्तुति के रूप में सामने आता है !
यहाँ कृष्ण सिर्फ लोकनायक या अवतार नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा और जीवन के प्रतीक हैं ! इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण को परमब्रह्म के रूप में प्रस्तुत किया गया है ! वे सृष्टि के आदि स्रोत हैं ! समस्त शक्तियों के मूल रूप हैं ! यह पुराण इस सिद्धांत को प्रतिपादित करता है कि संसार केवल ब्रह्म का एक विवर्त है ! एक ऐसा भगवान जो स्वयं ही अपना विस्तार है और सृष्टि उसकी लीला मात्र !
इस पुराण में कुल 270 से अधिक अध्याय हैं ! इसे मुख्यतः चार बड़े खंडों में बाँटा गया है ! हास्य, रस, श्रद्धा, नीति, पौराणिकता हर अध्याय अपने आप में गंभीरता और सुंदरता लिये हुए है ! मेरे अनुभव में इन खंडों को पढ़ते समय जो आनंद मिलता है वह दुर्लभ है ! इन खंडों की संक्षिप्त रूप रेखा इस प्रकार है :
राधा कृष्ण : अनुराग और तात्त्विक तादात्म्य
यह पुराण राधा कृष्ण के दिव्य अनुराग को संपूर्ण सृष्टि की ऊर्जा का मूल मानता है ! राधा को कभी ‘ शक्ति का आदि स्रोत ‘ कहा गया है ! कभी ‘ कृष्ण की आत्मा की जड़ ‘ के रूप में उकेरा गया है ! राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं ! कृष्ण के बिना राधा का जीवन अर्थहीन !
यहां स्नेह सिर्फ भावनाओं का आदान प्रदान नहीं है ! बल्कि जीवन के परम रहस्य की अनुभूति है ! राधा कृष्ण का प्रेम संयोग वियोग से परे है ! यह आत्मा और परमात्मा का प्रश्न है ! मेरी समझ में इस पुराण के अनुसार उनकी लीला ही संसार की मूल प्रेरणा है !
इनकी प्रेम कथा को जिस विस्तृत और गहन भाव से प्रस्तुत किया गया है वह अन्य किसी पुराण में इस स्तर पर नहीं मिलता ! साहित्य, कला और संगीत में राधा कृष्ण की रासलीला और उनके संवाद भारतीय जनमानस में अमर हो गए हैं !
स्त्रीशक्ति का अभिनव दृष्टिकोण
ब्रह्मवैवर्त पुराण अन्य सभी पुराणों के तुलना में स्त्री के प्रति अद्वितीय दृष्टि प्रस्तुत करता है ! यहाँ हर स्त्री को राधा की अभिव्यक्ति माना गया है ! स्त्री का अपमान स्वयं देवी का अपमान है ऐसा प्रतिपादन मिलता है !
स्त्री को समाज में आदर देने की प्रेरणा यही ग्रंथ देता है ! उसका पूजन करने का संदेश है ! उसके अस्तित्व को स्वीकार करने की शिक्षा है ! स्त्रीत्व को शक्ति, ममता, करुणा और सर्जना की मूर्ति बताकर यह पुराण यथार्थ जीवन में भी नारी के महत्व को स्थापित करता है !
आज के युग में जब कन्या भ्रूण हत्या, स्त्री शोषण और असमानता जैसी समस्याएं चर्चित हैं तब यह दृष्टिकोण समाज के लिये अत्यंत प्रासंगिक है !
ब्रह्मवैवर्त पुराण न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक स्तर पर भी अपने गहरे प्रभाव के लिए जाना जाता है ! श्रद्धा आंदोलन में राधा कृष्ण समर्पण का जो स्वरुप प्रसार हुआ उसमें इस पुराण की रचनाएँ और दर्शन सबसे असरदार रहे ! रास लीला की परंपराएँ, राधा कृष्ण के भजन, चित्रकला, नृत्य और साहित्य इन सभी में ब्रह्मवैवर्त पुराण की छवि विद्यमान है !
आज भी जन्माष्टमी, होली और कई वैष्णव उत्सवों पर इस पुराण की कथाएँ गाँव गाँव, शहर शहर में गाई जाती हैं ! बाल लीलाएँ, आत्मिक जुड़ाव की कहानियाँ, राधा कृष्ण के संवाद इन सभी ने भारतीय जीवन में एक जीवंत रंग भर दिया है !
इस ग्रंथ में श्रद्धा को मोक्ष प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताया गया है ! इसमें धर्म, व्रत, पुण्य, दान, सत्कर्म, अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांत बड़ी सुंदरता से उकेरे गए हैं ! वर्णाश्रम व्यवस्था, हित अहित, और समाजिक व्यवस्था पर इसके अनेक श्लोक गूढ़ अर्थ लिए सामने आते हैं !
कर्म सिद्धांत इसका केंद्र है ! जो जैसा कर्म करेगा वैसा फल पाएगा ! जीवन की प्रत्येक घटना को कर्मफल के दर्शन से जोड़कर समझाने की कोशिश इस पुराण में है ! स्वर्ग नरक, पुनर्जन्म, मोक्ष इत्यादि विषयों पर यहाँ गहरी अंतर्दृष्टि दी गई है !
ब्रह्मवैवर्त पुराण की सबसे बड़ी विशिष्टता है राधा जी को कृष्ण से भी ऊँचा स्थान देना ! इसी में राधा और कृष्ण के विवाह का उल्लेख मिलता है ! इस विवाह को ब्रह्मा जी स्वयं संपन्न कराते हैं !
गोलोक धाम, जहाँ राधा कृष्ण का अनंत आत्मिक जुड़ाव नित्यविहित है उसे वैकुंठ और कैलाश से ऊपर स्थान बताया गया है ! यहाँ कृष्ण को शिव, गणेश, ब्रह्मा जैसे अन्य देवताओं का भी प्रधान स्रोत कहा गया है ! इससे इस ग्रंथ में एकेश्वरवाद और समग्रता की भावना झलकती है !
यह पुराण प्राचीन शताब्दियों में तो मौजूद था ! किंतु वर्तमान स्वरुप विशेषकर बंगाल के उपासना आंदोलन के समय लोकप्रिय हुआ ! यह पंद्रह ( 15 )वीं – सोलह ( 16 )वीं शताब्दी का काल था ! इसमें चैतन्य महाप्रभु की वैष्णव परंपरा दिखाई देती है ! जीवगोस्वामी जैसे संतों का भी प्रत्यक्ष प्रभाव है !
इसे कई बार परिवर्तनों और पुनर्लेखनों का सामना करना पड़ा ! इससे इसकी शैली और दृष्टिकोण में क्षेत्रीय रंग और लोक ध्वनि महसूस की जा सकती है !
राधा-कृष्ण का विवाह
यहाँ एक दुर्लभ प्रसंग मिलता है ! किस प्रकार ब्रह्मा जी ने स्वर्ग में राधा कृष्ण का दिव्य विवाह संपन्न कराया था ! इस विवाह की कथा हर किसी पुराण में नहीं मिलती ! यह ब्रह्मवैवर्त पुराण की मूल पहचान है ! राधा जी को गोलोक धाम की अधिष्ठात्री माना गया है ! संसार की आदि शक्ति कहा गया है ! कृष्ण की अनंत प्रेममूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया !
गोलोक धाम को इस पुराण में वैकुंठ और कैलाश से भी ऊपर बताया गया है ! यह स्थल राधा कृष्ण की शाश्वत प्रेम लीला का स्थान है ! यहाँ आत्मा न नश्वर है, न दुःख है ! केवल स्नेह का मर्म है ! यह अवधारणा भारतीय अध्यात्म की गहराई को विशेष रूप से प्रस्तुत करती है !
जहाँ एक ओर आज का समाज हर क्षेत्र में तेजी से बदल रहा है वहीं दूसरी ओर संकीर्णता, स्वार्थ, असहिष्णुता और नैतिक पतन जैसी चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं ! ऐसे समय में ब्रह्मवैवर्त पुराण की शिक्षा बहुत काम आती है ! स्त्री का आदर, अनुराग की शुद्धता, श्रद्धा और धर्म का महत्व ये सब हर व्यक्ति के जीवन में प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं !
आधुनिक शहरों में रहने वाले लोग भी जब इस पुराण की कथाएँ सुनते हैं तो उनके चेहरे पर एक अलग ही शांति छा जाती है ! स्त्री सशक्तिकरण आंदोलन, सामाजिक समरसता, उपासना और आत्मिक शांति की ओर जाता आज का जीवन यही बताता है कि ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे ग्रंथों को केवल पढ़ना नहीं बल्कि आत्मसात करना चाहिए !
विद्यालयों, विश्वविद्यालयों में इसकी कथाएँ पढ़ी जाती हैं। साहित्य और कला में इसका प्रभाव देखा जाता है ! समर्पण परंपरा में तो यह एक आलोक स्तंभ की तरह है !
अंततः ब्रह्मवैवर्त पुराण वह ग्रंथ है जिसमें अनुराग, समर्पण, धर्म, नीति, संस्कृति, समाज और अध्यात्म का अप्रतिम संगम है ! यह न केवल राधा कृष्ण के दिव्य संवादों से जीवन को रंगीन बनाता है बल्कि आधुनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने का मार्ग भी दिखाता है !
इसका पढ़ना सबसे पहले आत्मा के भीतर छुपे अनंत स्नेह को जगाना है ! दूसरे को गरिमा देना है ! तीसरे जीवन को पूजा की तरह जीने की प्रेरणा पाना है !
चाहे आप विद्वान हों या साधारण गृहस्थ, विद्यार्थी हों या कलाकार ब्रह्मवैवर्त पुराण आपको जीवन को देखने का एक नया नजरिया देता है ! यही कारण है कि हजारों वर्षों बाद भी इसका प्रभाव, महत्ता और आकर्षण कम नहीं हुआ है ! बल्कि आज के मानव के भीतर सच्ची मानवता की खोज में यह हमेशा उजास फैलाता रहेगा !