मार्कंडेय पुराण : वक्त की धूल में दबा एक अनमोल रत्न
बचपन में सुनी कहानियों की तरह ही कुछ ग्रंथ होते हैं जिन्हें पढ़ते वक्त लगता है जैसे कोई बुजुर्ग हमसे बैठकर बात कर रहा हो ! मार्कंडेय पुराण भी कुछ ऐसा ही है ! यह सिर्फ धार्मिक किताब नहीं है बल्कि जिंदगी की एक मुकम्मल दास्तान है जो हजारों साल बाद भी उतनी ही ताजी लगती है !
महर्षि मार्कंडेय की कहानी ही कुछ अजीब है ! सोचिए, एक बच्चे को कहा जाए कि वह सिर्फ सोलह ( 16 ) साल जिएगा ! आजकल के माता पिता तो ऐसी बात सुनकर पागल हो जाएंगे ! लेकिन मार्कंडेय के माता पिता ने हिम्मत नहीं हारी ! उन्होंने अपने बेटे में इतनी भक्ति भर दी कि भगवान शिव खुद उनकी रक्षा के लिए आ गए !
जब यमराज आए मार्कंडेय को लेने तो वह शिवलिंग से लिपटे हुए थे ! महादेव ने यमराज को ललकारा और मार्कंडेय को चिरंजीवी बना दिया ! यह कहानी बताती है कि सच्ची भक्ति के आगे मौत भी हार मान लेती है !
यही मार्कंडेय ऋषि इस पुराण के मुख्य वक्ता हैं ! जैमिनी मुनि से बातचीत के रूप में पूरा ग्रंथ रचा गया है ! मैं जब भी इसे पढ़ता हूँ तो लगता है जैसे दो बुजुर्ग आपस में चर्चा कर रहे हों और हम चुपचाप उनकी बातें सुन रहे हों !
इस पुराण की खासियत यह है कि यह किसी एक भगवान की गुणगान में नहीं लगा रहता ! आजकल की तरह यहाँ कोई पक्षपात नहीं है ! न तो यह सिर्फ शिव की महिमा गाता है न ही केवल विष्णु की ! यह सबको बराबर का सम्मान देता है !
एक सौ सैंतीस ( 137 ) अध्याय और लगभग सात हजार ( 7000 ) श्लोक हैं इसमें ! कहते हैं कि पहले नौ हजार ( 9000 ) श्लोक थे लेकिन समय के साथ कुछ हिस्से यहाँ वहाँ बिखर गए ! फिर भी जो बचा है, वह काफी है हमारे लिए !
अगर मार्कंडेय पुराण में कोई चीज सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है तो वह है देवी महात्म्य ! इसे दुर्गा सप्तशती भी कहते हैं ! नवरात्र में जो ” या देवी सर्वभूतेषु ” पढ़ते हैं वह यहीं से आता है !
कहानी शुरू होती है दो परेशान आदमियों से एक राजा सुरथ है, जिसे उसके ही मंत्रियों ने धोखा दिया है, और एक वैश्य समाधि है जिसके घरवालों ने ही उसे निकाल दिया ! दोनों जंगल में भटक रहे हैं और मिल जाते हैं ऋषि मेधा से !
ऋषि उन्हें बताते हैं कि इस दुनिया में माया का जाल कैसे फैला है और कैसे माँ दुर्गा इस सबसे ऊपर हैं ! फिर शुरू होती है महिषासुर की कहानी ! यह दानव इतना शक्तिशाली था कि सारे देवता हार गए थे ! तब सभी देवों की शक्ति मिलकर माँ दुर्गा बनीं और महिषासुर का अंत किया !
मुझे लगता है यह कहानी सिर्फ दानव के बारे में नहीं है ! यह हमारे अंदर के महिषासुर घमंड, लालच, गुस्से को मारने की बात करती है !
अब बात करते हैं एक ऐसे राजा की जिसने सत्य के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया ! हरिश्चन्द्र की कहानी सुनकर कभी कभी लगता है कि इतना भी सत्यवादी होना ठीक है क्या ? लेकिन फिर सोचता हूँ कि शायद यही तो असली टेस्ट है चरित्र का !
बात यह हुई कि जंगल में शिकार के दौरान राजा की मुलाकात विश्वामित्र ऋषि से हो गई ! ऋषि ने पूछा क्या तुम वाकई में सब कुछ दान कर सकते हो ? राजा ने हामी भर दी ! बस यहीं से शुरू हुई उनकी आपत्ति !
पहले राज्य गया, फिर रानी को बेचना पड़ा, फिर बेटे को ! आखिर में खुद को भी ! काशी में एक चांडाल के यहाँ काम करने लगे श्मशान घाट की देखभाल ! सबसे दुखदायी बात यह हुई कि जब उनके बेटे की मौत हुई तो उसका अंतिम संस्कार करने के लिए भी पैसे देने पड़े ! अपने ही बेटे के लिए !
लेकिन राजा हरिश्चन्द्र ने कभी सच का साथ नहीं छोड़ा ! आखिर में देवताओं को भी उनकी सत्यनिष्ठा के आगे सिर झुकाना पड़ा ! सब कुछ वापस मिल गया राज्य, रानी, बेटा, सम्मान !
आजकल के नेताओं को यह कहानी जरूर सुननी चाहिए ! जब वादे करते हैं तो याद रखना चाहिए कि हरिश्चन्द्र भी एक राजा ही था !
मार्कंडेय पुराण में एक दिलचस्प बात यह है कि यह बताता है कि समय कैसे चलता है ! चौदह ( 14 ) मन्वन्तरों की बात है इसमें ! हर मन्वन्तर में अलग मनु होते हैं, अलग देवता, अलग राजा ! फिलहाल हम वैवस्वत मनु के सातवें मन्वन्तर में जी रहे हैं !
यह चक्रीय समय की अवधारणा है ! यानी ब्रह्मांड का बनना मिटना चलता ही रहता है ! आधुनिक विज्ञान भी कुछ इसी तरह की बात करता है बिग बैंग के बारे में ! हमारे पुराने ऋषि मुनियों को कैसे पता था यह सब ? शायद उन्होंने इसे किसी और तरीके से समझा था !
सिर्फ कहानियां ही नहीं हैं इस पुराण में ! जड़ी बूटियों के बारे में भी काफी जानकारी है ! देवी से जुड़ी तमाम औषधियों का जिक्र है जो आज भी आयुर्वेद में काम आती हैं !
इससे पता चलता है कि पुराने जमाने में धर्म और विज्ञान को अलग चीज नहीं माना जाता था ! दोनों साथ साथ चलते थे ! यह शायद आज के वैज्ञानिकों के लिए भी कोई सीख हो !
आज जब चारों तरफ भ्रष्टाचार है, झूठ है, धोखाधड़ी है, तब मार्कंडेय पुराण और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है ! यह हमें बताता है कि कुछ चीजें कभी पुरानी नहीं होतीं सच्चाई, ईमानदारी, न्याय !
मार्कंडेय ऋषि की भक्ति हो या हरिश्चन्द्र की सच्चाई या फिर देवी दुर्गा की शक्ति ये सभी आज भी उतने ही काम के हैं ! बल्कि शायद आज ज्यादा जरूरत है इनकी !
जब कभी लगता है कि दुनिया में बुराई जीत रही है तो याद आता है कि देवी माँ ने महिषासुर को हराया था ! जब लगता है कि सच बोलने में नुकसान है तो हरिश्चन्द्र की याद आती है ! जब लगता है कि जिंदगी की मुश्किलों से हारकर हार मान लेना चाहिए तो मार्कंडेय की अमरता की कहानी हौसला देती है !
मार्कंडेय पुराण कोई सिर्फ किताब नहीं है ! यह एक जीवंत परंपरा है जो हमारे साथ चलती रहती है !
इसमें जो सच्चाई है वह वक्त के साथ पुरानी नहीं होती ! बल्कि जैसे जैसे दुनिया जटिल होती जाती है ये सीधी सादी बातें और भी कीमती लगती हैं !
हो सकता है आज की तेज दुनिया में इन्हें समझने का वक्त न मिले ! लेकिन जब भी जरूरत पड़ेगी ये कहानियां यहीं मिल जाएंगी ! हमारे दिल में, हमारी परंपरा में, हमारी संस्कृति के ताने बाने में ! और यही तो है असली अमरता मार्कंडेय ऋषि की तरह !