शिवपुराण: जीवन, भक्ति और चेतना की गहराइयों की यात्रा
जब मैंने पहली बार शिवपुराण को उठाया, तो मन में कई सवाल थे ! क्या यह केवल धार्मिक कथा है ? क्या इसमें वही बातें होंगी जो हम बचपन से सुनते आए हैं ? या फिर यह वास्तव में कोई ऐसा ग्रंथ है जो जीवन के हर पहलू को छूता है ? सच कहूँ तो शुरुआत में मुझे यह केवल एक पौराणिक किताब लगी लेकिन जैसे जैसे इसके पन्ने खुले वैसे वैसे यह किताब मेरे लिए एक अनुभव, एक साधना, और कभी-कभी तो आत्मा का दर्पण बन गई !
पढ़ते पढ़ते मुझे बचपन की यादें भी लौट आईं ! जब शाम को दादी घर की चौखट पर दीपक जलाकर बैठतीं और धीरे धीरे शिव पार्वती की कहानियाँ सुनातीं, तब हम बच्चे मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते थे ! उन कहानियों में भक्ति भी थी, डर भी, रहस्य भी और अजीब सा अपनापन भी ! वर्षों बाद जब मैंने शिवपुराण खोला, तो वही भावनाएँ फिर से जीवित हो उठीं !
शिवपुराण केवल चौबीस हजार ( 24,000 ) श्लोकों का संग्रह नहीं है ! यह जीवन और मृत्यु के बीच खड़ा वह पुल है जो हमें बताता है कि इंसान क्यों जन्म लेता है, क्यों दुख भोगता है, और किस तरह मोक्ष की ओर बढ़ सकता है ! इसकी सबसे खास बात यह है कि यह हर बार एक ही शिक्षा को अलग अलग रूपों में सामने लाता है ! शुरू-शुरू में मुझे लगा कि यहाँ बहुत पुनरावृत्ति है लेकिन धीरे धीरे समझ आया कि यह पुनरावृत्ति ही इसकी शक्ति है ! जैसे कोई गुरु अपने शिष्य को बार बार समझाता है कि “यह मत भूलो, यही असली सार है !”
कभी कभी जब शिव पार्वती संवाद पढ़ता हूँ, तो लगता है जैसे मैं खुद उस संवाद का हिस्सा बन गया हूँ ! पार्वती के प्रश्न वही हैं जो किसी भी साधारण इंसान के मन में उठते हैं जीवन का उद्देश्य क्या है, भक्ति क्या है, दुख क्यों हैं ? और शिव के उत्तर इतने सरल लेकिन गहरे होते हैं कि मन अचानक शांत हो जाता है !
उदाहरण के लिए, जब भस्म का रहस्य बताया जाता है तो पहली नज़र में यह केवल राख की पूजा लगती है ! लेकिन जैसे जैसे कथा खुलती है तो समझ आता है कि यह जीवन की नश्वरता और असली पहचान का प्रतीक है ! यही बातें शिवपुराण को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन दर्शन बनाती हैं !
पढ़ते पढ़ते कई बार ऐसा हुआ कि मैं किताब बंद करके देर तक सोचता रह गया ! एक बार मैंने शिवलिंग की महिमा पढ़ी ! उसमें बताया गया था कि यह केवल एक पत्थर नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है ! उस दिन मैं देर रात तक यही सोचता रहा कि आखिर क्यों पूरी मानवता किसी न किसी रूप में इस शिवलिंग के आगे झुक जाती है ! क्या यह केवल परंपरा है या फिर हमारे भीतर गहराई से जुड़ी हुई कोई सामूहिक चेतना ?
शिवपुराण की एक और खूबी है इसकी भाषा ! जहाँ दूसरे शास्त्र भारी भरकम संस्कृत में लिखे हुए हैं, वहीं शिवपुराण पढ़ते समय एक सादगी, एक आत्मीयता महसूस होती है ! अनुवाद या भाष्य में भी इसकी संवेदना इतनी साफ़ झलकती है कि पाठक खुद को कहानी का हिस्सा समझने लगता है !
मुझे याद है, एक बार मैंने शिवरात्रि का व्रत रखा था ! उस दिन पूरा दिन मन में शिवपुराण के वाक्य घूमते रहे ! भूख प्यास तो लगी, लेकिन उन कथाओं ने जैसे भीतर से ऊर्जा भर दी ! शाम को जब पूजा की, तो लगा कि यह केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि अपने भीतर की शक्ति से जुड़ने का तरीका है !
यह ग्रंथ केवल भक्ति तक सीमित नहीं है, इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है ! जब शिव के त्रिनेत्र की बात आती है तो यह केवल कोई अलौकिक शक्ति नहीं बल्कि जागरूकता और चेतना का प्रतीक है ! गंगा अवतरण की कथा पढ़ते समय मुझे लगा कि यह केवल एक पौराणिक घटना नहीं बल्कि जल, पर्यावरण और जीवन के संतुलन का संदेश है ! यही वजह है कि शिवपुराण समय के साथ पुराना नहीं होता बल्कि हर युग में नया अर्थ देता है !
पाठक के रूप में मुझे एक और चीज़ बहुत प्रभावित करती है इसकी पुनरावृत्ति ! बार बार कर्म, भक्ति और वैराग्य पर लौटना ! कई बार तो मैं हँस भी पड़ता था कि यह बात तो पहले भी कही गई थी ! लेकिन फिर सोचता हूँ कि इंसान की आदत है भूलने की ! हम रोज़ वही गलतियाँ दोहराते हैं, वही मोह माया में फँसते हैं ! शायद इसीलिए शिवपुराण हमें बार बार याद दिलाता है कि जीवन का असली लक्ष्य क्या है !
इस ग्रंथ में हर व्यक्ति अपने लिए कुछ न कुछ पा सकता है ! कोई साधक योग और साधना के रहस्य खोजेगा, कोई गृहस्थ पारिवारिक जीवन में संतुलन ढूँढेगा, कोई भक्त केवल भक्ति की सरलता महसूस करेगा ! मुझे सबसे ज़्यादा यह बात पसंद आई कि शिवपुराण किसी एक वर्ग के लिए नहीं है, यह हर उस इंसान के लिए है जो जीवन को समझना चाहता है !
जब मैंने बारह ( 12 ) ज्योतिर्लिंगों की महिमा पढ़ी, तो मन में एक गहरी इच्छा जगी कि कभी इन सभी स्थानों की यात्रा करूँ ! ऐसा नहीं कि केवल धार्मिक कारण से, बल्कि इसलिए कि यह स्थान हमारे भीतर की चेतना से जुड़ने का अवसर देते हैं !
समय बदलता है, समाज बदलता है, लेकिन शिवपुराण की कथाएँ और संदेश उतने ही जीवंत रहते हैं ! आज के तनाव, प्रतियोगिता और भागदौड़ के बीच यह ग्रंथ संतुलन सिखाता है ! कभी कभी जब मैं परेशान होता हूँ या कोई नैतिक मूल्य डगमगाने लगता है, तो इसकी कोई न कोई कथा मेरे सामने आ जाती है ! और सच कहूँ तो कई बार वही मेरे लिए जीवन का सहारा बन जाती है !
आख़िर में अगर मुझसे कोई पूछे कि शिवपुराण क्या है, तो मैं यही कहूँगा यह किताब नहीं, यह यात्रा है ! यह वह मार्ग है जो इंसान को उसकी जिज्ञासा, भय, मोह और भक्ति तक ले जाता है ! यह वह दर्पण है जिसमें हर व्यक्ति अपना चेहरा, अपना सच, और अपनी आत्मा देख सकता है !
जब जब जीवन उलझता है, जब जब सवाल मन को घेरते हैं, तब तब मुझे यही लगता है शिवपुराण केवल पढ़ने के लिए नहीं, यह जीने के लिए है !शिवपुराण: जीवन, भक्ति और चेतना की गहराइयों की यात्रा
जब मैंने पहली बार शिवपुराण को उठाया, तो मन में कई सवाल थे ! क्या यह केवल धार्मिक कथा है ? क्या इसमें वही बातें होंगी जो हम बचपन से सुनते आए हैं ? या फिर यह वास्तव में कोई ऐसा ग्रंथ है जो जीवन के हर पहलू को छूता है ? सच कहूँ तो शुरुआत में मुझे यह केवल एक पौराणिक किताब लगी लेकिन जैसे जैसे इसके पन्ने खुले वैसे वैसे यह किताब मेरे लिए एक अनुभव, एक साधना, और कभी-कभी तो आत्मा का दर्पण बन गई !
पढ़ते पढ़ते मुझे बचपन की यादें भी लौट आईं ! जब शाम को दादी घर की चौखट पर दीपक जलाकर बैठतीं और धीरे धीरे शिव पार्वती की कहानियाँ सुनातीं, तब हम बच्चे मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते थे ! उन कहानियों में भक्ति भी थी, डर भी, रहस्य भी और अजीब सा अपनापन भी ! वर्षों बाद जब मैंने शिवपुराण खोला, तो वही भावनाएँ फिर से जीवित हो उठीं !
शिवपुराण केवल चौबीस हजार ( 24,000 ) श्लोकों का संग्रह नहीं है ! यह जीवन और मृत्यु के बीच खड़ा वह पुल है जो हमें बताता है कि इंसान क्यों जन्म लेता है, क्यों दुख भोगता है, और किस तरह मोक्ष की ओर बढ़ सकता है ! इसकी सबसे खास बात यह है कि यह हर बार एक ही शिक्षा को अलग अलग रूपों में सामने लाता है ! शुरू-शुरू में मुझे लगा कि यहाँ बहुत पुनरावृत्ति है लेकिन धीरे धीरे समझ आया कि यह पुनरावृत्ति ही इसकी शक्ति है ! जैसे कोई गुरु अपने शिष्य को बार बार समझाता है कि “यह मत भूलो, यही असली सार है !”
कभी कभी जब शिव पार्वती संवाद पढ़ता हूँ, तो लगता है जैसे मैं खुद उस संवाद का हिस्सा बन गया हूँ ! पार्वती के प्रश्न वही हैं जो किसी भी साधारण इंसान के मन में उठते हैं जीवन का उद्देश्य क्या है, भक्ति क्या है, दुख क्यों हैं ? और शिव के उत्तर इतने सरल लेकिन गहरे होते हैं कि मन अचानक शांत हो जाता है !
उदाहरण के लिए, जब भस्म का रहस्य बताया जाता है तो पहली नज़र में यह केवल राख की पूजा लगती है ! लेकिन जैसे जैसे कथा खुलती है तो समझ आता है कि यह जीवन की नश्वरता और असली पहचान का प्रतीक है ! यही बातें शिवपुराण को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन दर्शन बनाती हैं !
पढ़ते पढ़ते कई बार ऐसा हुआ कि मैं किताब बंद करके देर तक सोचता रह गया ! एक बार मैंने शिवलिंग की महिमा पढ़ी ! उसमें बताया गया था कि यह केवल एक पत्थर नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है ! उस दिन मैं देर रात तक यही सोचता रहा कि आखिर क्यों पूरी मानवता किसी न किसी रूप में इस शिवलिंग के आगे झुक जाती है ! क्या यह केवल परंपरा है या फिर हमारे भीतर गहराई से जुड़ी हुई कोई सामूहिक चेतना ?
शिवपुराण की एक और खूबी है इसकी भाषा ! जहाँ दूसरे शास्त्र भारी भरकम संस्कृत में लिखे हुए हैं, वहीं शिवपुराण पढ़ते समय एक सादगी, एक आत्मीयता महसूस होती है ! अनुवाद या भाष्य में भी इसकी संवेदना इतनी साफ़ झलकती है कि पाठक खुद को कहानी का हिस्सा समझने लगता है !
मुझे याद है, एक बार मैंने शिवरात्रि का व्रत रखा था ! उस दिन पूरा दिन मन में शिवपुराण के वाक्य घूमते रहे ! भूख प्यास तो लगी, लेकिन उन कथाओं ने जैसे भीतर से ऊर्जा भर दी ! शाम को जब पूजा की, तो लगा कि यह केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि अपने भीतर की शक्ति से जुड़ने का तरीका है !
यह ग्रंथ केवल भक्ति तक सीमित नहीं है, इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है ! जब शिव के त्रिनेत्र की बात आती है तो यह केवल कोई अलौकिक शक्ति नहीं बल्कि जागरूकता और चेतना का प्रतीक है ! गंगा अवतरण की कथा पढ़ते समय मुझे लगा कि यह केवल एक पौराणिक घटना नहीं बल्कि जल, पर्यावरण और जीवन के संतुलन का संदेश है ! यही वजह है कि शिवपुराण समय के साथ पुराना नहीं होता बल्कि हर युग में नया अर्थ देता है !
पाठक के रूप में मुझे एक और चीज़ बहुत प्रभावित करती है इसकी पुनरावृत्ति ! बार बार कर्म, भक्ति और वैराग्य पर लौटना ! कई बार तो मैं हँस भी पड़ता था कि यह बात तो पहले भी कही गई थी ! लेकिन फिर सोचता हूँ कि इंसान की आदत है भूलने की ! हम रोज़ वही गलतियाँ दोहराते हैं, वही मोह माया में फँसते हैं ! शायद इसीलिए शिवपुराण हमें बार बार याद दिलाता है कि जीवन का असली लक्ष्य क्या है !
इस ग्रंथ में हर व्यक्ति अपने लिए कुछ न कुछ पा सकता है ! कोई साधक योग और साधना के रहस्य खोजेगा, कोई गृहस्थ पारिवारिक जीवन में संतुलन ढूँढेगा, कोई भक्त केवल भक्ति की सरलता महसूस करेगा ! मुझे सबसे ज़्यादा यह बात पसंद आई कि शिवपुराण किसी एक वर्ग के लिए नहीं है, यह हर उस इंसान के लिए है जो जीवन को समझना चाहता है !
जब मैंने बारह ( 12 ) ज्योतिर्लिंगों की महिमा पढ़ी, तो मन में एक गहरी इच्छा जगी कि कभी इन सभी स्थानों की यात्रा करूँ ! ऐसा नहीं कि केवल धार्मिक कारण से, बल्कि इसलिए कि यह स्थान हमारे भीतर की चेतना से जुड़ने का अवसर देते हैं !
समय बदलता है, समाज बदलता है, लेकिन शिवपुराण की कथाएँ और संदेश उतने ही जीवंत रहते हैं ! आज के तनाव, प्रतियोगिता और भागदौड़ के बीच यह ग्रंथ संतुलन सिखाता है ! कभी कभी जब मैं परेशान होता हूँ या कोई नैतिक मूल्य डगमगाने लगता है, तो इसकी कोई न कोई कथा मेरे सामने आ जाती है ! और सच कहूँ तो कई बार वही मेरे लिए जीवन का सहारा बन जाती है !
आख़िर में अगर मुझसे कोई पूछे कि शिवपुराण क्या है, तो मैं यही कहूँगा यह किताब नहीं, यह यात्रा है ! यह वह मार्ग है जो इंसान को उसकी जिज्ञासा, भय, मोह और भक्ति तक ले जाता है ! यह वह दर्पण है जिसमें हर व्यक्ति अपना चेहरा, अपना सच, और अपनी आत्मा देख सकता है !
जब जब जीवन उलझता है, जब जब सवाल मन को घेरते हैं, तब तब मुझे यही लगता है शिवपुराण केवल पढ़ने के लिए नहीं, यह जीने के लिए है !